Monday, May 28, 2018

दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई काहे को दुनिया बनाई? . . यह जीवन सृष्टि आखिर बनी क्यों है? क्यों इस तरह हम जन्म लेते है , मरते है , तरह तरह के फल पाते है , कुछ बेहद कष्टदायक तो कुछ आनंद से भरे? . . वैज्ञानिकों के मन में भी यह सवाल उठता है। बच्चों और बडों के मन में भी। बच्चें जब दुखी होते है कई बार दुनिया बनाने वाले को कोसने लगते है। कई बार हम ही सोचते सोचते सोचने लग जाते है कि आखिर भगवान हमे ऐसा क्यों करते है। तब मैं कहता हूँ , रुक जाओ, हम गलत दिशा में जा रहे है। क्योंकि भगवान के विषय में कुछ भी नकारात्मक असम्भव है। हमे अपनी सोंच की दिशा बदल कर चिंतन करना होगा। . इसी तरह जब वैज्ञानिक यह सिद्धांत देते है कि जीवन एक तरह का वीडियो गेम है और हम उसके पात्र। तो मैं यही कह उठता हूँ। रुक जाओ, हम गलत दिशा में जा रहे है। पहले यू टर्न मारो , वापस आओ, अब सकारात्मक दिशा में जाओ। जीवन को समझना साधारण बुद्धि का काम नही है। योग की भाषा में कहे तो ऋतुम्भरा प्रज्ञा से हम यह तत्व ज्ञान समझ सकते है। . जीवन जीना हमारी ही इच्छा का परिणाम है। हमारी विभिन्न इच्छाएं तन्मात्रा जैसे शब्द , गन्ध, स्वाद, ज्ञान आदि है। इनका भोग करने के लिए विभिन्न ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ है। . इन इच्छाओं के अनुरूप जीवन जीना हम चुनते है। इस जीवन की व्यवस्था बनाये रखने को कर्म का नियम है। हम इस नियम के अनुसार गिरते है। फिर उठते है। इस जीवन का एक नियम समय भी है। समय का ही परिणाम गुरुत्वाकर्षण है। योग की उच्च अवस्था में हमे समयहीनता का बोध होता है। . इच्छाएं हमारे अहंकार से उठती है। विज्ञान जहां अहंकार है , आध्यात्म हमे अहंकार से मुक्त होना सिखाता है। अहंकार से मुक्त हो कर एकत्व का बोध होता है। जिसमे हम हर जीव में स्वयं को देखते है। और अंत में परमात्मा भी हम ही है , ऐसा पाते है। . तो अपने आप को एक वीडियो गेम का पात्र या रोबोट ना समझे। अपना जीवन आनन्द से जीये। . . हर अच्छे बुरे समय को स्वीकार करे। और उच्च अवस्था को प्राप्त करे।

दुनिया बनाने वाले क्या तेरे मन में समाई
काहे को दुनिया बनाई?
.
.
यह जीवन सृष्टि आखिर बनी क्यों है? क्यों इस तरह हम जन्म लेते है , मरते है , तरह तरह के फल पाते है , कुछ बेहद कष्टदायक तो कुछ आनंद से भरे?
.
.
वैज्ञानिकों के मन में भी यह सवाल उठता है। बच्चों और बडों के मन में भी। बच्चें जब दुखी होते है कई बार दुनिया बनाने वाले को कोसने लगते है। कई बार हम ही सोचते सोचते सोचने लग जाते है कि आखिर भगवान हमे ऐसा क्यों करते है। तब मैं कहता हूँ , रुक जाओ, हम गलत दिशा में जा रहे है। क्योंकि भगवान के विषय में कुछ भी नकारात्मक असम्भव है। हमे अपनी सोंच की दिशा बदल कर चिंतन करना होगा।
.
इसी तरह जब वैज्ञानिक यह सिद्धांत देते है कि जीवन एक तरह का वीडियो गेम है और हम उसके पात्र। तो मैं यही कह उठता  हूँ। रुक जाओ, हम गलत दिशा में जा रहे है। पहले यू टर्न मारो , वापस आओ, अब सकारात्मक दिशा में जाओ।
जीवन को समझना साधारण बुद्धि का काम नही है। योग की भाषा में कहे तो ऋतुम्भरा प्रज्ञा से हम यह तत्व ज्ञान समझ सकते है।
.
जीवन जीना हमारी ही इच्छा का परिणाम है। हमारी विभिन्न इच्छाएं तन्मात्रा जैसे शब्द , गन्ध, स्वाद, ज्ञान आदि है। इनका भोग करने के लिए विभिन्न ज्ञानेन्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ है।
.
इन इच्छाओं के अनुरूप जीवन जीना हम चुनते है।
इस जीवन की व्यवस्था बनाये रखने को कर्म का नियम है। हम इस नियम के अनुसार गिरते है। फिर उठते है।
इस जीवन का एक नियम समय भी है। समय का ही परिणाम गुरुत्वाकर्षण है।
योग की उच्च अवस्था में हमे समयहीनता का बोध होता है।
.
इच्छाएं हमारे अहंकार से उठती है। विज्ञान जहां अहंकार है , आध्यात्म हमे अहंकार से मुक्त होना सिखाता है। अहंकार से मुक्त हो कर एकत्व का बोध होता है। जिसमे हम हर जीव में स्वयं को देखते है। और अंत में परमात्मा भी हम ही है , ऐसा पाते है।
.
तो अपने आप को एक वीडियो गेम का पात्र या रोबोट ना समझे।
अपना जीवन आनन्द से जीये।
.
.
हर अच्छे बुरे समय को स्वीकार करे। और उच्च अवस्था को प्राप्त करे।

No comments:

Post a Comment