Wednesday, May 30, 2018

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गोपी को देव दर्शन

Shubhratri jai shree radhe krishna

गोपी को
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एक गोपी एक वृक्ष के नीचे ध्यान लगा बैठ जाती है। कान्हा को सदा ही शरारतें सूझती रहती हैँ। कान्हा कभी उस गोपी को कंकर मारकर छेड़ते हैं कभी उसकी चोटी खींच लेते हैं तो कभी अलग अलग पक्षियों और जानवरों की आवाज़ निकाल उसका ध्यान भंग करते हैं । गोपी खीझ कर कान्हा से कहती है। मोहन तुम मेरी ध्यान साधना में भंग क्यों डालते हो ,मुझे देवी के दर्शन करने हैँ। मुझे उनसे कुछ वर मांगना है । गोपी के मन में कान्हा के लिए इतना प्रेम है कि कान्हा से ही छिपा लेती है । कान्हा उस भोली गोपी को अपनी बातों में उलझा लेते हैं। अरी मूर्ख !ऐसे ध्यान करने से ईश्वर नहीं मिलते । उनको प्रसन्न करने के लिए उनको बहुत कुछ खिलाना पड़ता है। तू कल सुबह बहुत सारे मिष्ठान ले मन्दिर में आना फिर मैं तुम्हें देवी दर्शन की विधि बताऊँगा। देवी प्रसन्न हो गई तो तुम्हें वर देंगी और तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।

    अगले दिन प्रातः गोपी बहुत से मिष्ठान ले मन्दिर में पहुंच जाती है। देवी की प्रतिमा के समक्ष सब रख धूप दीप कर बैठ जाती है। कान्हा अपने सखाओं संग वहां पहुंच जाते हैं। गोपी कान्हा को देख बहुत प्रसन्न होती है। कान्हा बरसाना की ओर इशारा करके बोलते हैं उन देवी का स्थान जगत में सबसे ऊपर है। उनके दर्शन तो बड़े बड़े ऋषि मुनियों को दुर्लभ हैं। वो देवी तेरी मनोकामना पूर्ण करेंगी    परन्तु तुम्हें पहले मुझे प्रसन्न करना होगा तभी मैं तुमको देवी के दर्शन करवाऊंगा। कान्हा तुमको कैसे प्रसन्न करूँ। ये जो सब स्वादिष्ट मिष्ठान तू लाई है ये सब मुझे और मेरे सखाओं को खिला दे। नहीं कान्हा ये तो सब देवी पूजन हेतु है। चल छोड़ फिर तुझे देवी दर्शन नहीं हो सकता। अपनी कामना भूल जा तू। गोपी ये भी चाहती है कि उसके प्रियतम कान्हा ये सब मिष्ठान पा लें परन्तु मन में अभी देवी दर्शन की लालसा भी है। गोपी की स्थिति विचित्र हो रही है। कान्हा    कहते हैं गोपी देख मेरे पास शक्ति है मैं किसी भी देवी देवता को अपनी इच्छा अनुसार बुला सकता हूँ। कान्हा तुम मुझे मूर्ख बना रहे हो,अपने माखन से सने हुए मुख को साफ़ करने की शक्ति तो तुम में नहीं है। मैं ही मूर्ख रही जो तुम्हारी बातों में आ गयी । अब तुम भाग जाओ यहां से और मुझे देवी दर्शन करने दो।कान्हा ललचाई दृष्टि से मिष्ठान की और देखते हैं। गोपी खीझ कर उनको मारने को दौड़ती है।   

   कान्हा उसको पकड़ लेते हैं और उसकी आँखें बन्द कर देते हैं । गोपी को श्री राधा के दिव्य स्वरूप् का दर्शन होता है गोपी उनको अपनी मनोकामना बताती हैं और श्री जू मन्द मन्द मुस्कुराती हैँ। वो उनका तेज सहन नहीं कर पाती और मूर्छित हो जाती हैं।

कान्हा और उनकी शरारती मित्र मण्डली के शोर से चेतना लौटने पर एक बार तो गोपी बहुत प्रसन्न होती है। उसको देवी दर्शन की स्मृति रहती है ।परन्तु अपने खाली बर्तन और सब मिठाई खत्म देख वो अत्यंत क्रोधित हो जाती है और उन सबको मारने को दौड़ती है।

   भोली गोपी क्या जानती है कि जिसे वो प्रेम भी करती है और जिसकी ऊधम से भी खीझ जाती है वही पूर्ण परमेश्वर हैँ जो उसकी मनोकामना को पूर्ण करने हेतु उसे कैसे भी ठग लेते हैँ।

जय जय श्री राधे🌹🌹

✍ 🔰 *मोह की गांठ* 🔰 शरीर में आत्मा का जितने दिन का पार्ट है वह बजा लेने के बाद आत्मा को वह शरीर छोड़ना ही पड़ेगा और जब शरीर छूटेगा तो सम्बन्ध और पदार्थ भी छूटेंगे इसलिये सम्बन्धो की गाँठ जितनी ढीली होगी , अंत समय उसे खोलना उतना ही आसान होगा। यदि हमे कहीं कोई ऐसी गाँठ बांधनी हो जिसे थोड़े समय के बाद खोलना हो तो हम उसे ढीला बांधते हैं . यदि कस कर बाँध दी तो सहजता से नही खुलेगी , बहुत मेहनत लगानी पड़ेगी और हो सकता है कि गाँठ खुले ही नही . और जब गाँठ खुलेगी नही तो उसे काट कर ही अलग करना पड़ेगा।👼 इसी प्रकार परिवारजनो के साथ ,पदार्थों के साथ और सम्बंधियों के साथ मोह ममता की गाँठ ढीली ढीली बंधिये क्योकि उसे आज नही तो कल खोलना ही पड़ेगा । शरीर में आत्मा का जितने दिन का पार्ट है वह बजा लेने के बाद आत्मा को वह शरीर छोड़ना ही पड़ेगा और यह नियम है ,मृत्यु से डरने की जरूरत नही है और जब शरीर छूटेगा तो सम्बन्ध और पदार्थ भी छूटेंगे और आत्मा अपने संस्कारो के साथ आगे का सफर शुरू कर लेगी। यदि सबके साथ मोह और आसक्ति की गाँठ कस कर बाँधी होगी तो जीते जी मर्ज़ झेलना पड़ेगा और अंत समय आत्मा अलग होने में कष्ट अनुभव करेगी . प्रेम निस्वार्थ और सदा सुखद होता है और मोह दर्द दुख का कारण बनता है। प्रेम और मोह अलग अलग है इसकी जागरूकता आनी जरूरी है। सदैव स्मृति में रहे कि , संसार रूपी नाटक शाळा में हमारा फ़र्ज़ है कि हम अपना अभिनय अनासक्ति के साथ करें . दूसरे के अभिनय की तरफ ध्यान ना दे कर अपने पार्ट को अच्छी तरह निभाएं . यदि हम आपसी सम्बन्धो में न्यारे , हर्षित ,शांत व सच्चे हो कर रहते हैं तो फ़र्ज़ है पर यदि अज्ञानतावश क्रोध , मोह , अहंकार और दुःख का लेन देन करते हैं तो यही सम्बन्ध मर्ज़ बन जाते हैं । याद रहे - परमात्मा हमारा भाग्य नहीं लिखता... *जीवन के आज के हर कदम पर हमारी सोच , हमारे बोल व हमारे कर्म ही हमारा आगे का भाग्य लिखते हैं .* अतः सदा स्मरण रहे... कि हर पल , कलम भी हमारी है... लिखावट भी हमारी है... और फिर तो भाग्य भी हमारा ही है...!! 🙏🙏


🔰 *मोह की गांठ* 🔰

शरीर में आत्मा का जितने दिन का पार्ट है वह बजा लेने के बाद आत्मा को वह शरीर छोड़ना ही पड़ेगा और जब शरीर छूटेगा तो सम्बन्ध और पदार्थ भी छूटेंगे
इसलिये सम्बन्धो की गाँठ जितनी ढीली होगी , अंत समय उसे खोलना उतना ही आसान होगा।
यदि हमे कहीं कोई ऐसी गाँठ बांधनी हो जिसे थोड़े समय के बाद खोलना हो तो हम उसे ढीला बांधते हैं . यदि कस कर बाँध दी तो सहजता से नही खुलेगी , बहुत मेहनत लगानी पड़ेगी और हो सकता है कि गाँठ खुले ही नही . और जब गाँठ खुलेगी नही तो उसे काट कर ही अलग करना पड़ेगा।👼

इसी प्रकार परिवारजनो के साथ ,पदार्थों के साथ और सम्बंधियों के साथ मोह ममता की गाँठ ढीली ढीली बंधिये क्योकि उसे आज नही तो कल खोलना ही पड़ेगा ।

शरीर में आत्मा का जितने दिन का पार्ट है वह बजा लेने के बाद आत्मा को वह शरीर छोड़ना ही पड़ेगा और यह नियम है ,मृत्यु से डरने की जरूरत नही है और जब शरीर छूटेगा तो सम्बन्ध और पदार्थ भी छूटेंगे और आत्मा अपने संस्कारो के साथ आगे का सफर शुरू कर लेगी।

यदि सबके साथ मोह और आसक्ति की गाँठ कस कर बाँधी होगी तो जीते जी मर्ज़ झेलना पड़ेगा और अंत समय आत्मा अलग होने में कष्ट अनुभव करेगी .
प्रेम निस्वार्थ और सदा सुखद होता है और मोह दर्द दुख का कारण बनता है।
प्रेम और मोह अलग अलग है इसकी जागरूकता आनी जरूरी है।

सदैव स्मृति में रहे कि ,

संसार रूपी नाटक शाळा में हमारा फ़र्ज़ है कि हम अपना अभिनय अनासक्ति के साथ करें . दूसरे के अभिनय की तरफ ध्यान ना दे कर अपने पार्ट को अच्छी तरह निभाएं .

यदि हम आपसी सम्बन्धो में न्यारे , हर्षित ,शांत व सच्चे हो कर रहते हैं तो फ़र्ज़ है पर यदि अज्ञानतावश क्रोध , मोह , अहंकार और दुःख का लेन देन करते हैं तो यही सम्बन्ध मर्ज़ बन जाते हैं ।

याद रहे - परमात्मा हमारा भाग्य नहीं लिखता...

*जीवन के आज के हर कदम पर हमारी सोच , हमारे बोल व हमारे कर्म ही हमारा आगे का भाग्य लिखते हैं .*

अतः सदा स्मरण रहे... कि हर पल , कलम भी हमारी है... लिखावट भी हमारी है... और फिर तो भाग्य भी हमारा ही है...!!

                🙏🙏

एक बार अवश्य पढ़े.... श्री कृष्ण और सुदामा से जुड़ी सच्ची कहानी. मेरे मन में सुदामा के सम्बन्ध में एक बड़ी शंका थी कि एक विद्वान् ब्राह्मण अपने बाल सखा कृष्ण से छुपाकर चने कैसे खा सकता है ??? आज भागवत पर चर्चा करते हुए एक व्याख्याकार ने इस शंका का निराकरण किया। इस चर्चा को आपसे साझा करना जरुरी समझता हूँ ताकि आप भी समाज में फैली इस भ्रान्ति को दूर कर सकें। सुदामा की दरिद्रता, और चने की चोरी के पीछे एक बहुत ही रोचक और त्याग-पूर्ण कथा है- एक अत्यंत गरीब निर्धन बुढ़िया भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नही मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते उसे रात हो गयी। बुढ़िया ने सोंचा अब ये चने रात मे नही, प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर खाऊँगी । यह सोंचकर उसने चनों को कपडे में बाँधकर रख दिए और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी। बुढ़िया के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये। चोरों ने चनों की पोटली देख कर समझा इसमे सोने के सिक्के हैं अतः उसे उठा लिया। चोरो की आहट सुनकर बुढ़िया जाग गयी और शोर मचाने लगी ।शोर-शराबा सुनकर गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे। चने की पोटली लेकर भागे चोर पकडे जाने के डर से संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। इसी संदीपन मुनि के आश्रम में भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। चोरों की आहट सुनकर गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता ने पुकारा- कौन है ?? गुरुमाता को अपनी ओर आता देख चोर चने की पोटली छोड़कर वहां से भाग गये। इधर भूख से व्याकुल बुढ़िया ने जब जाना ! कि उसकी चने की पोटली चोर उठा ले गए हैं तो उसने श्राप दे दिया- " मुझ दीनहीन असहाय के चने जो भी खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा " । उधर प्रात:काल आश्रम में झाडू लगाते समय गुरुमाता को वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली खोल के देखी तो उसमे चने थे। उसी समय सुदामा जी और श्री कृष्ण जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे। गुरुमाता ने वह चने की पोटली सुदामा को देते हुए कहा बेटा ! जब भूख लगे तो दोनो यह चने खा लेना । सुदामा जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। उन्होंने ज्यों ही चने की पोटली हाथ मे ली, सारा रहस्य जान गए। सुदामा ने सोचा- गुरुमाता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना, लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो मेरे प्रभु के साथ साथ तीनो लोक दरिद्र हो जाएंगे। नही-नही मै ऐसा नही होने दूँगा। मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा। मै ये चने स्वयं खा लूँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा और सुदामा ने कृष्ण से छुपाकर सारे चने खुद खा लिए। अभिशापित चने खाकर सुदामा ने स्वयं दरिद्रता ओढ़ ली लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को बचा लिया। अद्वतीय त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले सुदामा, चोरी-छुपे चने खाने का अपयश भी झेले । जय श्रीकृष्णा

एक बार अवश्य पढ़े....
श्री कृष्ण और सुदामा से जुड़ी सच्ची कहानी.

मेरे मन में सुदामा के सम्बन्ध में एक बड़ी शंका थी कि एक विद्वान् ब्राह्मण अपने बाल सखा कृष्ण से छुपाकर चने कैसे खा सकता है ???

आज भागवत पर चर्चा करते हुए एक व्याख्याकार ने इस शंका का निराकरण किया। इस चर्चा को आपसे साझा करना जरुरी समझता हूँ ताकि आप भी समाज में फैली इस भ्रान्ति को दूर कर सकें।

सुदामा की दरिद्रता, और चने की चोरी के पीछे एक बहुत ही रोचक और त्याग-पूर्ण कथा है- एक अत्यंत गरीब निर्धन बुढ़िया भिक्षा माँग कर जीवन यापन करती थी। एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नही मिली वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी। छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चने मिले। कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते उसे रात हो गयी। बुढ़िया ने सोंचा अब ये चने रात मे नही, प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर खाऊँगी ।

यह सोंचकर उसने चनों को कपडे में बाँधकर रख दिए और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी। बुढ़िया के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये।

चोरों ने चनों की पोटली देख कर समझा इसमे सोने के सिक्के हैं अतः उसे उठा लिया। चोरो की आहट सुनकर बुढ़िया जाग गयी और शोर मचाने लगी ।शोर-शराबा सुनकर गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे। चने की पोटली लेकर भागे चोर पकडे जाने के डर से संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये। इसी संदीपन मुनि के आश्रम में भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। चोरों की आहट सुनकर गुरुमाता को लगा की कोई आश्रम के अन्दर आया है गुरुमाता ने पुकारा- कौन है ?? गुरुमाता को अपनी ओर आता देख चोर चने की पोटली छोड़कर वहां से भाग गये।

इधर भूख से व्याकुल बुढ़िया ने जब जाना ! कि उसकी चने की पोटली चोर उठा ले गए हैं तो उसने श्राप दे दिया- " मुझ दीनहीन असहाय के चने जो भी खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा " ।

उधर प्रात:काल आश्रम में झाडू लगाते समय गुरुमाता को वही चने की पोटली मिली। गुरु माता ने पोटली खोल के देखी तो उसमे चने थे। उसी समय सुदामा जी और श्री कृष्ण जंगल से लकड़ी लाने जा रहे थे।

गुरुमाता ने वह चने की पोटली सुदामा को देते हुए कहा बेटा ! जब भूख लगे तो दोनो यह चने खा लेना ।
सुदामा जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। उन्होंने ज्यों ही चने की पोटली हाथ मे ली, सारा रहस्य जान गए।

सुदामा ने सोचा- गुरुमाता ने कहा है यह चने दोनो लोग बराबर बाँट के खाना, लेकिन ये चने अगर मैने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो मेरे प्रभु के साथ साथ तीनो लोक दरिद्र हो जाएंगे। नही-नही मै ऐसा नही होने दूँगा। मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा।
मै ये चने स्वयं खा लूँगा लेकिन कृष्ण को नही खाने दूँगा और सुदामा ने कृष्ण से छुपाकर सारे चने खुद खा लिए। अभिशापित चने खाकर सुदामा ने स्वयं दरिद्रता ओढ़ ली लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को बचा लिया।

अद्वतीय त्याग का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले सुदामा, चोरी-छुपे चने खाने का अपयश भी झेले ।
                   जय श्रीकृष्णा

#गवाॅर...... एक लड़की की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ एक सिधे साधे लड़के से की जाती है जिसके घर मे एक मां के आलावा और कोई नहीं है। दहेज मे लड़के को बहुत सारे उपहार और पैसे मिले होते हैं । लड़की किसी और लड़के से बेहद प्यार करती थी और लड़का भी... लड़की शादी होके आ गयी अपने ससुराल...सुहागरात के वक्त लड़का दूध लेके आता है तो दुल्हन सवाल पूछती है अपने पति से...एक पत्नी की मर्जी के बिना पति उसको हाथ लगाये तो उसे बलात्कार कहते है या हक? पति - आपको इतनी लम्बी और गहरी जाने की कोई जरूरत नहीं है.. बस दूध लाया हूँ पी लिजीयेगा.. . हम सिर्फ आपको शुभ रात्रि कहने आये थे कहके कमरे से निकल जाता है। लड़की मन मारकर रह जाती है क्योंकि लड़की चाहती थी की झगड़ा हो ताकी मैं इस गंवार से पिछा छुटा सकूँ । है तो दुल्हन मगर घर का कोई भी काम नहीं करती। बस दिनभर online रहती और न जाने किस किस से बातें करती मगर उधर लड़के की माँ बिना शिकायत के दिन भर चुल्हा चौका से लेकर घर का सारा काम करती मगर हर पल अपने होंठों पर मुस्कुराहट लेके फिरती । लड़का एक कम्पनी मे छोटा सा मुलाजीम है और बेहद ही मेहनती और इमानदार। करीब महीने भर बित गये मगर पति पत्नी अब तक साथ नहीं सोये... वैसे लड़का बहुत शांत स्वाभाव वाला था इसलिए वह ज्यादा बातें नहीं करता था, बस खाने के वक्त अपनी पत्नी से पूछ लेता था कि... .कहा खाओगी..अपने कमरे मे या हमारे साथ। और सोने से पहले डायरी लिखने की आदत थी जो वह हर रात को लिखता था। ऐसे लड़की के पास एक स्कूटी था वह हर रोज बाहर जाती थी पति के अफीस जाने के बाद और पति के वापस लौटते ही आ जाती थी। छुट्टी का दिन था लड़का भी घर पे ही था तो लड़की ने अच्छे भले खाने को भी गंदा कहके मा को अपशब्द बोलके खाना फेंक देती है मगर वह शांत रहने वाला उसका पति अपनी पत्नी पर हाथ उठा देता है मगर माँ अपने बेटे को बहुत डांटती है। इधर लड़की को बहाना चाहिए था झगड़े का जो उसे मिल गया था, वह पैर पटकती हुई स्कूटी लेके निकल पड़ती है। लड़की जो रोज घर से बाहर जाती थी वह अपने प्यार से मिलने जाती थी, लड़की भले टूटकर चाहती थी लड़के को मगर उसे पता था की हर लड़की की एक हद होती है जिसे इज्जत कहते है वह उसको बचाये रखी थी। इधर लड़की अपने प्यार के पास पहुँचकर कहती है। अब तो एक पल भी उस घर मे नहीं रहना है मुझे । आज गंवार ने मुझपर हाथ उठाके अच्छा नही किया । लड़का - अरे तुमसे तो मैं कब से कहता हूँ की भाग चलो मेरे साथ कहीं दूर मगर तुम हो की आज कल आज कल पे लगी रहती हो। लड़की - शादी के दिन मैं आई थी तो तुम्हारे पास। तुम ही ने तो लौटाया था मुझे । लड़का - खाली हाथ कहा तक भागोगे तुम ही बोलो..मैंने तो कहा था कि कुछ पैसे और गहने साथ ले लो तुम तो खाली हाथ आई थी। आखिर दूर एक नयी जगह मे जिंदगी नये सिरे से शुरू करने के लिए पैसे तो चाहिए न? लड़की - तुम्हारे और मेरे प्यार के बारे मे जानकर मेरे घरवालो ने बैंक के पास बुक एटी एम और मेरे गहने तक रख लिये थे। तो मैं क्या लाती अपने साथ । हम दोनों मेहनत करके कमा भी तो सकते थे। लड़का - चलाकर इंसान पहले सोचता है और फिर काम करता है। खाली हाथ भागते तो ये इश्क का भूत दो दिन मे उतर जाता समझी? और जब भी तुम्हें छुना चाहता हूँ बहुत नखरे है तुम्हारे । बस कहती हो शादी के बाद । लड़की - हाँ शादी के बाद ही अच्छा होता है ये सब और सब तुम्हारा तो है। मैं आज भी एक कुवारी लड़की हूँ । शादी करके भी आज तक उस गंवार के साथ सो न सकी क्योंकि तुम्हें ही अपना पति मान चुकी हूँ बस तुम्हारे नाम की सिंदूर लगानी बाकी है। बस वह लगा दो सबकुछ तुम अपनी मर्जी से करना। लड़का - ठीक है मैं तैयार हूँ । मगर इस बार कुछ पैसे जरूर साथ लेके आना, मत सोचना हम दौलत से प्यार करते हैं । हम सिर्फ तुमसे प्यार करते है बस कुछ छोटी मोटी बिजनेस के लिए पैसे चाहिए । लड़की - उस गंवार के पास कहा होगा पैसा, मेरे बाप से 3 लाख रूपया उपर से मारूती कार लि है। बस कुछ गहने है वह लेके आउगी आज। लड़का लड़की को होटल का पता देकर चला जाता है । लड़की घर आके फिर से लड़ाई करती है। मगर अफसोस वह अकेली चिल्लाती रहती है उससे लड़ने वाला कोई नहीं था। रात 8 बजे लड़के का मैसेज आता है वाटसप पे की कब आ रही हो? लड़की जवाब देती है सब्र करो कोई सोया नहीं है। मैं 12 बजे से पहले पहुँच जाउगी क्योंकि यंहा तुम्हारे बिना मेरी सांसे घुटती है। लड़का -ओके जल्दी आना। मैं होटल के बाहर खड़ा रहूंगा bye ... लड़की अपने पति को बोल देती है की मुझे खाना नहीं चाहिए मैंने बाहर खा लिया है इसलिए मुझे कोई परेशान न करे इतना कहके दरवाजा बंद करके अंदर आती है की...पति बोलता है की...वह आलमारी से मेरी डायरी दे दो फिर बंद करना दरवाजा। हम परेशान नहीं करेंगे । लड़की दरवाजा खोले बिना कहती है की चाभीया दो अलमारी की, लड़का - तुम्हारे बिस्तर के पैरों तले है चाबी । मगर लड़की दरवाजा नहीं खोलती वल्की जोर जोर से गाना सुनने लगती है। बाहर पति कुछ देर दरवाजा पिटता है फिर हारकर लौट जाता है। लड़की ने बड़े जोर से गाना बजा रखा था। फिर वह आलमारी खोलके देखती है जो उसने पहली बार खोला था, क्योंकि वह अपना समान अलग आलमारी मे रखती थी। आलमारी खोलते ही हैरान रह जाती है। आलमारी मे उसके अपने पास बुक एटी एम कार्ड थे जो उसके घरवालो ने छीन के रखे थे खोलके चेक किया तो उसमें वह पैसे भी एड थे जो दहेज मे लड़के को मिले थे। और बहुत सारे गहने भी जो एक पेपर के साथ थे और उसकी मिल्कीयेत लड़की के नाम थी, लड़की बेहद हैरान और परेशान थी। फिर उसकी नजर डायरी मे पड़ती है और वह जल्दी से वह डायरी निकालके पढ़ने लगती है। लिखा था, तुम्हारे पापा ने एक दिन मेरी मां की जान बचाइ थी अपना खून देकर । मैं अपनी माँ से बेहद प्यार करता हूँ इसलिए मैंने झूककर आपके पापा को प्रणाम करके कहा की...आपका ये अनमोल एहसान कभी नही भूलूंगा, कुछ दिन बाद आपके पापा हमारे घर आये हमारे तुम्हारे रिश्ते की बात लेकर मगर उन्होंने आपकी हर बात बताई हमें की आप एक लड़के से बेहद प्यार करती हो। आपके पापा आपकी खुशी चाहते थे इसलिए वह पहले लड़के को जानना चाहते थे। आखिर आप अपने पापा की princess जो थी और हर बाप अपने Princess के लिए एक अच्छा इमानदार Prince चाहता है। आपके पापा ने खोजकर के पता लगाया की वह लड़का बहुत सी लड़की को धोखा दे चुका है। और पहली शादी भी हो चुकी है पर आपको बता न सके क्योंकि उन्हें पता था की ये जो इश्क का नशा है वह हमेशा अपनों को गैर और गैर को अपना समझता है। ऐक बाप के मुँह से एक बेटी की कहानी सुनकर मै अचम्भीत हो गया। हर बाप यंहा तक शायद ही सोचे। मुझे यकीन हो गया था की एक अच्छा पति होने का सम्मान मिले न मिले मगर एक दामाद होने की इज्जत मैं हमेशा पा सकता हूँ। मुझे दहेज मे मिले सारे पैसे मैंने तुम्हारे ए काउण्ट मे कर दिए और तुम्हारे घर से मिली गाड़ी आज भी तुम्हारे घर पे है जो मैंने इसलिए भेजी ताकी जब तुम्हें मुझसे प्यार हो जाये तो साथ चलेंगे कही दूर घूमने। दहेज...इस नाम से नफरत है मुझे क्योंकि मैंने इ दहेज मे अपनी बहन और बाप को खोया है। मेरे बाप के अंतिम शब्द भी येही थे की..कीसी बेटी के बाप से कभी एक रूपया न लेना। मर्द हो तो कमाके खिलाना, तुम आजाद हो कहीं भी जा सकती हो। डायरी के बिच पन्नों पर तलाक की पेपर है जंहा मैंने पहले ही साईन कर दिया है । जब तुम्हें लगे की अब इस गंवार के साथ नही रखना है तो साईन करके कहीं भी अपनी सारी चिजे लेके जा सकती हो। लड़की ...हैरान थी परेशान थी...न चाहते हुए भी गंवार के शब्दों ने दिल को छुआ था। न चाहते हुए भी गंवार के अनदेखे प्यार को महसूस करके पलके नम हुई थी। आगे लिखा था, मैंने तुम्हें इसलिए मारा क्योंकि आपने मा को गाली दी, और जो बेटा खुद के आगे मा की बेइज्जती होते सहन कर जाये...फिर वह बेटा कैसा । कल आपके भी बच्चे होंगे । चाहे किसी के साथ भी हो, तब महसूस होगी माँ की महानता और प्यार। आपको दुल्हन बनाके हमसफर बनाने लाया हूँ जबरजस्ती करने नहीं। जब प्यार हो जाये तो भरपूर वसूल कर लूँगा आपसे...आपके हर गुस्ताखी का बदला हम शिद्दत से लेंगे हम आपसे...गर आप मेरी हुई तो बेपनाह मोहब्बत करके किसी और की हुई तो आपके हक मे दुवाये माँग के लड़की का फोन बज रहा था जो भायब्रेशन मोड पे था, लड़की अब दुल्हन बन चुकी थी। पलकों से आशू गिर रहे थे । सिसकते हुए मोबाइल से पहले सिम निकाल के तोड़ा फिर सारा सामान जैसा था वैसे रख के न जाने कब सो गई पता नहीं चला। सुबह देर से जागी तब तक गंवार अफीस जा चुका था, पहले नहा धोकर साड़ी पहनी । लम्बी सी सिंदूर डाली अपनी माँग मे फिर मंगलसूत्र । जबकि पहले एक टीकी जैसी साईड पे सिंदूर लगाती थी ताकी कोई लड़का ध्यान न दे मगर आज 10 किलोमीटर से भी दिखाई दे ऐसी लम्बी और गाढी सिंदूर लगाई थी दुल्हन ने। फिर किचन मे जाके सासुमा को जबर्दस्ती कमरे मे लेके तैयार होने को कहती है। और अपने गंवार पति के लिए थोड़े नमकीन थोड़े हलुवे और चाय बनाके अपनी स्कूटी मे सासुमा को जबर्दस्ती बिठाकर (जबकी कुछ पता ही नहीं है उनको की बहू आज मुझे कहा ले जा रही है बस बैठ जाती है) फिर रास्ते मे सासुमा को पति के अफीस का पता पूछकर अफीस पहुँच जाती है। पति हैरान रह जाता है पत्नी को इस हालत मे देखकर। पति - सब ठीक तो है न मां? मगर माँ बोलती इससे पहले पत्नी गले लगाकर कहती है की..अब सब ठीक है...I love you forever... अफीस के लोग सब खड़े हो जाते है तो दुल्हन कहती है की..मै इनकी धर्मपत्नी हूँ । बनवास गई थी सुबह लौटी हूँ अब एक महीने तक मेरे पतिदेव अफीस मे दिखाई नहीं देंगे अफीस के लोग? ????? दुल्हन - क्योंकि हम लम्बी छुट्टी पे जा रहे साथ साथ। पति- पागल... दुल्हन - आपके सादगी और भोलेपन ने बनाया है। सभी लोग तालीया बजाते हैं और दुल्हन फिर से लिपट जाती है अपने गंवार से ... जंहा से वह दोबारा कभी भी छूटना नहीं चाहती। * बड़े कड़े फैसले होते है कभी कभी हमारे अपनों की मगर हम समझ नहीं पाते की...हमारे अपने हमारी फिकर खुद से ज्यादा क्यों करते हैं* * मां बाप के फैसलों का सम्मान करे* क्योंकि ये दो ऐसे शख्स है जो आपको हमेशा दुनियादारी से ज्यादा प्यार करते हैं । कैसा लगा ये प्रसंग ? कॉमेंट कर के बताइए अगर हो सके तो हमारे पेज को like जरूर कर दीजिए ऐसी ही ओर भी मजेदार कहानियो के लिए... 👇 अच्छा लगा हो तो शेयर जरूर करें....

#गवाॅर......
एक लड़की की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ एक सिधे
साधे लड़के से की जाती है जिसके घर मे एक मां के आलावा
और कोई नहीं है।
दहेज मे लड़के को बहुत सारे उपहार और पैसे मिले होते हैं ।
लड़की किसी और लड़के से बेहद प्यार करती थी और लड़का
भी...
लड़की शादी होके आ गयी अपने ससुराल...सुहागरात के
वक्त लड़का दूध लेके आता है तो दुल्हन सवाल पूछती है
अपने पति से...एक पत्नी की मर्जी के बिना पति उसको
हाथ लगाये तो उसे बलात्कार कहते है या हक?
पति - आपको इतनी लम्बी और गहरी जाने की कोई
जरूरत नहीं है..
बस दूध लाया हूँ पी लिजीयेगा.. . हम सिर्फ आपको शुभ
रात्रि कहने आये थे कहके कमरे से निकल जाता है। लड़की
मन मारकर रह जाती है क्योंकि लड़की चाहती थी की
झगड़ा हो ताकी मैं इस गंवार से पिछा छुटा सकूँ ।
है तो दुल्हन मगर घर का कोई भी काम नहीं करती। बस
दिनभर online रहती और न जाने किस किस से बातें
करती मगर उधर लड़के की माँ बिना शिकायत के दिन भर
चुल्हा चौका से लेकर घर का सारा काम करती मगर हर
पल अपने होंठों पर मुस्कुराहट लेके फिरती । लड़का एक
कम्पनी मे छोटा सा मुलाजीम है और बेहद ही मेहनती और
इमानदार। करीब महीने भर बित गये मगर पति पत्नी
अब तक साथ नहीं सोये... वैसे लड़का बहुत शांत स्वाभाव
वाला था इसलिए वह ज्यादा बातें नहीं करता था, बस
खाने के वक्त अपनी पत्नी से पूछ लेता था कि... .कहा
खाओगी..अपने कमरे मे या हमारे साथ। और सोने से पहले
डायरी लिखने की आदत थी जो वह हर रात को लिखता
था।
ऐसे लड़की के पास एक स्कूटी था वह हर रोज बाहर
जाती थी पति के अफीस जाने के बाद और पति के वापस
लौटते ही आ जाती थी। छुट्टी का दिन था लड़का भी
घर पे ही था तो लड़की ने अच्छे भले खाने को भी गंदा
कहके मा को अपशब्द बोलके खाना फेंक देती है मगर वह
शांत रहने वाला उसका पति अपनी पत्नी पर हाथ उठा
देता है मगर माँ अपने बेटे को बहुत डांटती है। इधर
लड़की को बहाना चाहिए था झगड़े का जो उसे मिल गया
था, वह पैर पटकती हुई स्कूटी लेके निकल पड़ती है। लड़की
जो रोज घर से बाहर जाती थी वह अपने प्यार से मिलने
जाती थी, लड़की भले टूटकर चाहती थी लड़के को मगर
उसे पता था की हर लड़की की एक हद होती है जिसे
इज्जत कहते है वह उसको बचाये रखी थी। इधर लड़की
अपने प्यार के पास पहुँचकर कहती है।
अब तो एक पल भी उस घर मे नहीं रहना है मुझे । आज
गंवार ने मुझपर हाथ उठाके अच्छा नही किया ।
लड़का - अरे तुमसे तो मैं कब से कहता हूँ की भाग चलो मेरे
साथ कहीं दूर मगर तुम हो की आज कल आज कल पे लगी
रहती हो।
लड़की - शादी के दिन मैं आई थी तो तुम्हारे पास। तुम
ही ने तो लौटाया था मुझे ।
लड़का - खाली हाथ कहा तक भागोगे तुम ही बोलो..मैंने
तो कहा था कि कुछ पैसे और गहने साथ ले लो तुम तो
खाली हाथ आई थी।
आखिर दूर एक नयी जगह मे जिंदगी नये सिरे से शुरू करने के
लिए पैसे तो चाहिए न?
लड़की - तुम्हारे और मेरे प्यार के बारे मे जानकर मेरे
घरवालो ने बैंक के पास बुक एटी एम और मेरे गहने तक रख
लिये थे। तो मैं क्या लाती अपने साथ । हम दोनों मेहनत
करके कमा भी तो सकते थे।
लड़का - चलाकर इंसान पहले सोचता है और फिर काम
करता है। खाली हाथ भागते तो ये इश्क का भूत दो दिन
मे उतर जाता समझी?
और जब भी तुम्हें छुना चाहता हूँ बहुत नखरे है तुम्हारे ।
बस कहती हो शादी के बाद ।
लड़की - हाँ शादी के बाद ही अच्छा होता है ये सब और
सब तुम्हारा तो है। मैं आज भी एक कुवारी लड़की हूँ ।
शादी करके भी आज तक उस गंवार के साथ सो न सकी
क्योंकि तुम्हें ही अपना पति मान चुकी हूँ बस तुम्हारे
नाम की सिंदूर लगानी बाकी है। बस वह लगा दो सबकुछ
तुम अपनी मर्जी से करना।
लड़का - ठीक है मैं तैयार हूँ । मगर इस बार कुछ पैसे जरूर
साथ लेके आना, मत सोचना हम दौलत से प्यार करते हैं ।
हम सिर्फ तुमसे प्यार करते है बस कुछ छोटी मोटी
बिजनेस के लिए पैसे चाहिए ।
लड़की - उस गंवार के पास कहा होगा पैसा, मेरे बाप से
3 लाख रूपया उपर से मारूती कार लि है।
बस कुछ गहने है वह लेके आउगी आज।
लड़का लड़की को होटल का पता देकर चला जाता है ।
लड़की घर आके फिर से लड़ाई करती है।
मगर अफसोस वह अकेली चिल्लाती रहती है उससे लड़ने
वाला कोई नहीं था।
रात 8 बजे लड़के का मैसेज आता है वाटसप पे की कब आ
रही हो?
लड़की जवाब देती है सब्र करो कोई सोया नहीं है। मैं
12 बजे से पहले पहुँच जाउगी क्योंकि यंहा तुम्हारे बिना
मेरी सांसे घुटती है।
लड़का -ओके जल्दी आना। मैं होटल के बाहर खड़ा रहूंगा
bye
...
लड़की अपने पति को बोल देती है की मुझे खाना नहीं
चाहिए मैंने बाहर खा लिया है इसलिए मुझे कोई परेशान
न करे इतना कहके दरवाजा बंद करके अंदर आती है
की...पति बोलता है की...वह आलमारी से मेरी डायरी दे
दो फिर बंद करना दरवाजा। हम परेशान नहीं करेंगे ।
लड़की दरवाजा खोले बिना कहती है की चाभीया दो
अलमारी की,
लड़का - तुम्हारे बिस्तर के पैरों तले है चाबी ।
मगर लड़की दरवाजा नहीं खोलती वल्की जोर जोर से
गाना सुनने लगती है। बाहर पति कुछ देर दरवाजा
पिटता है फिर हारकर लौट जाता है। लड़की ने बड़े जोर
से गाना बजा रखा था। फिर वह आलमारी खोलके देखती
है जो उसने पहली बार खोला था, क्योंकि वह अपना
समान अलग आलमारी मे रखती थी।
आलमारी खोलते ही हैरान रह जाती है। आलमारी मे
उसके अपने पास बुक एटी एम कार्ड थे जो उसके घरवालो
ने छीन के रखे थे
खोलके चेक किया तो उसमें वह पैसे भी एड थे जो दहेज मे
लड़के को मिले थे। और बहुत सारे गहने भी जो एक पेपर के
साथ थे और उसकी मिल्कीयेत लड़की के नाम थी, लड़की
बेहद हैरान और परेशान थी। फिर उसकी नजर डायरी मे
पड़ती है और वह जल्दी से
वह डायरी निकालके पढ़ने लगती है।
लिखा था, तुम्हारे पापा ने एक दिन मेरी मां की जान
बचाइ थी अपना खून देकर । मैं अपनी माँ से बेहद प्यार
करता हूँ इसलिए मैंने झूककर आपके पापा को प्रणाम करके
कहा की...आपका ये अनमोल एहसान कभी नही भूलूंगा, कुछ
दिन बाद आपके पापा हमारे घर आये हमारे तुम्हारे
रिश्ते की बात लेकर मगर उन्होंने आपकी हर बात बताई
हमें की आप एक लड़के से बेहद प्यार करती हो। आपके
पापा आपकी खुशी चाहते थे इसलिए वह पहले लड़के को
जानना चाहते थे। आखिर आप अपने पापा की princess
जो थी और हर बाप अपने Princess के लिए एक अच्छा
इमानदार Prince चाहता है। आपके पापा ने खोजकर के
पता लगाया की वह लड़का बहुत सी लड़की को धोखा दे
चुका है। और पहली शादी भी हो चुकी है पर आपको बता
न सके क्योंकि उन्हें पता था की ये जो इश्क का नशा है
वह हमेशा अपनों को गैर और गैर को अपना समझता है।
ऐक बाप के मुँह से एक बेटी की कहानी सुनकर मै अचम्भीत
हो गया। हर बाप यंहा तक शायद ही सोचे। मुझे यकीन
हो गया था की एक अच्छा पति होने का सम्मान मिले न
मिले मगर एक दामाद होने की इज्जत मैं हमेशा पा सकता
हूँ।
मुझे दहेज मे मिले सारे पैसे मैंने तुम्हारे ए काउण्ट मे कर
दिए और तुम्हारे घर से मिली गाड़ी आज भी तुम्हारे घर
पे है जो मैंने इसलिए भेजी ताकी जब तुम्हें मुझसे प्यार हो
जाये तो साथ चलेंगे कही दूर घूमने। दहेज...इस नाम से
नफरत है मुझे क्योंकि मैंने इ दहेज मे अपनी बहन और बाप
को खोया है। मेरे बाप के अंतिम शब्द भी येही थे
की..कीसी बेटी के बाप से कभी एक रूपया न लेना। मर्द
हो तो कमाके खिलाना, तुम आजाद हो कहीं भी जा
सकती हो। डायरी के बिच पन्नों पर तलाक की पेपर है
जंहा मैंने पहले ही साईन कर दिया है । जब तुम्हें लगे की
अब इस गंवार के साथ नही रखना है तो साईन करके कहीं
भी अपनी सारी चिजे लेके जा सकती हो।
लड़की ...हैरान थी परेशान थी...न चाहते हुए भी गंवार के
शब्दों ने दिल को छुआ था। न चाहते हुए भी गंवार के
अनदेखे प्यार को महसूस करके पलके नम हुई थी।
आगे लिखा था, मैंने तुम्हें इसलिए मारा क्योंकि आपने मा
को गाली दी, और जो बेटा खुद के आगे मा की बेइज्जती
होते सहन कर जाये...फिर वह बेटा कैसा ।
कल आपके भी बच्चे होंगे । चाहे किसी के साथ भी हो, तब
महसूस होगी माँ की महानता और प्यार।
आपको दुल्हन बनाके हमसफर बनाने लाया हूँ जबरजस्ती
करने नहीं। जब प्यार हो जाये तो भरपूर वसूल कर लूँगा
आपसे...आपके हर गुस्ताखी का बदला हम शिद्दत से लेंगे हम
आपसे...गर आप मेरी हुई तो बेपनाह मोहब्बत करके
किसी और की हुई तो आपके हक मे दुवाये माँग के
लड़की का फोन बज रहा था जो भायब्रेशन मोड पे था,
लड़की अब दुल्हन बन चुकी थी। पलकों से आशू गिर रहे थे ।
सिसकते हुए मोबाइल से पहले सिम निकाल के तोड़ा फिर
सारा सामान जैसा था वैसे रख के न जाने कब सो गई पता
नहीं चला। सुबह देर से जागी तब तक गंवार अफीस जा
चुका था, पहले नहा धोकर साड़ी पहनी । लम्बी सी
सिंदूर डाली अपनी माँग मे फिर मंगलसूत्र ।
जबकि पहले एक टीकी जैसी साईड पे सिंदूर लगाती थी
ताकी कोई लड़का ध्यान न दे
मगर आज 10 किलोमीटर से भी दिखाई दे ऐसी लम्बी
और गाढी सिंदूर लगाई थी दुल्हन ने। फिर किचन मे जाके
सासुमा को जबर्दस्ती कमरे मे लेके तैयार होने को कहती
है। और अपने गंवार पति के लिए थोड़े नमकीन थोड़े हलुवे
और चाय बनाके अपनी स्कूटी मे सासुमा को जबर्दस्ती
बिठाकर (जबकी कुछ पता ही नहीं है उनको की बहू आज
मुझे कहा ले जा रही है बस बैठ जाती है)
फिर रास्ते मे सासुमा को पति के अफीस का पता पूछकर
अफीस पहुँच जाती है। पति हैरान रह जाता है पत्नी को
इस हालत मे देखकर।
पति - सब ठीक तो है न मां?
मगर माँ बोलती इससे पहले पत्नी गले लगाकर कहती है
की..अब सब ठीक है...I love you forever...
अफीस के लोग सब खड़े हो जाते है तो दुल्हन कहती है
की..मै इनकी धर्मपत्नी हूँ । बनवास गई थी सुबह लौटी
हूँ
अब एक महीने तक मेरे पतिदेव अफीस मे दिखाई नहीं देंगे
अफीस के लोग? ?????
दुल्हन - क्योंकि हम लम्बी छुट्टी पे जा रहे साथ साथ।
पति- पागल...
दुल्हन - आपके सादगी और भोलेपन ने बनाया है।
सभी लोग तालीया बजाते हैं और दुल्हन फिर से लिपट
जाती है अपने गंवार से ...
जंहा से वह दोबारा कभी भी छूटना नहीं चाहती।
* बड़े कड़े फैसले होते है कभी कभी हमारे अपनों की मगर
हम समझ नहीं पाते की...हमारे अपने हमारी फिकर खुद से
ज्यादा क्यों करते हैं*
* मां बाप के फैसलों का सम्मान करे*
क्योंकि ये दो ऐसे शख्स है जो आपको हमेशा दुनियादारी
से ज्यादा प्यार करते हैं ।

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पुरूषोत्तम मास या अधिक (मल)मास 16मई 2018से 13जून2018तक हिंदू कैलेंडर में हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। संपूर्ण भारत की हिंदू धर्मपरायण जनता इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवद् भक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहती है। ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से अनेक गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह है कि श्रद्धालु जन अपनी पूरी श्रद्धा और शक्ति भक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न कर अपना इहलोक तथा परलोक सुधारने में जुट जाते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि यह माह इतना ही प्रभावशाली और पवित्र है, तो यह हर तीन साल में क्यों आता है? आखिर क्यों और किस कारण से इसे इतना पवित्र माना जाता है? इस एक माह को तीन विशिष्ट नामों से क्यों पुकारा जाता है? इसी तरह के तमाम प्रश्न स्वाभाविक रूप से हर जिज्ञासु के मन में आते हैं। तो आज ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर और अधिकमास को गहराई से जानते हैं- हर तीन साल में क्यों आता है अधिकमास- वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है। मल मास का नाम क्यों दिया गया है? हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि आमतौर पर नहीं किए जाते हैं। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मल मास पड़ गया है। पुरूषोत्तम मास क्यों और कैसे पड़ा नाम? अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरूषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरूषोत्तम मास भी बन गया। मास हर व्यक्ति विशेष अधिकमास को पुरूषोत्तम मास कहे जाने का एक सांकेतिक अर्थ भी है। ऐसा माना जाता है कि यह मास हर व्यक्ति विशेष के लिए तन-मन से पवित्र होने का समय होता है। इस दौरान श्रद्धालुजन व्रत, उपवास, ध्यान, योग और भजन- कीर्तन- मनन में संलग्न रहते हैं और अपने आपको भगवान के प्रति समर्पित कर देते हैं। इस तरह यह समय सामान्य पुरूष से उत्तम बनने का होता है, मन के मैल धोने का होता है। यही वजह है कि इसे पुरूषोत्तम मास का नाम दिया गया है। अधिकमास का पौराणिक आधार क्या है? अधिक मास के लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चूंकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानि आधा पुरूष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया। अधिकमास का महत्व क्या और क्यों है? हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है। अधिकमास में क्या करना उचित और संपूर्ण फलदायी होता है आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं। 

पुरूषोत्तम मास या अधिक (मल)मास

16मई 2018से 13जून2018तक

हिंदू कैलेंडर में हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है, जिसे अधिकमास, मल मास या पुरूषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस माह का विशेष महत्व है। संपूर्ण भारत की हिंदू धर्मपरायण जनता इस पूरे मास में पूजा-पाठ, भगवद् भक्ति, व्रत-उपवास, जप और योग आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहती है। ऐसा माना जाता है कि अधिकमास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा-पाठ से अनेक गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह है कि श्रद्धालु जन अपनी पूरी श्रद्धा और शक्ति भक्ति के साथ इस मास में भगवान को प्रसन्न कर अपना इहलोक तथा परलोक सुधारने में जुट जाते हैं। अब सोचने वाली बात यह है कि यदि यह माह इतना ही प्रभावशाली और पवित्र है, तो यह हर तीन साल में क्यों आता है? आखिर क्यों और किस कारण से इसे इतना पवित्र माना जाता है? इस एक माह को तीन विशिष्ट नामों से क्यों पुकारा जाता है? इसी तरह के तमाम प्रश्न स्वाभाविक रूप से हर जिज्ञासु के मन में आते हैं। तो आज ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर और अधिकमास को गहराई से जानते हैं-

हर तीन साल में क्यों आता है अधिकमास- वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो हर 32 माह, 16 दिन और 8 घटी के अंतर से आता है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।

मल मास का नाम क्यों दिया गया है?

हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत, विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी आदि आमतौर पर नहीं किए जाते हैं। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मल मास पड़ गया है।
पुरूषोत्तम मास क्यों और कैसे पड़ा नाम?

अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरूषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। इस विषय में एक बड़ी ही रोचक कथा पुराणों में पढ़ने को मिलती है। कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ, तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने उपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरूषोत्तम मास भी बन गया।
मास हर व्यक्ति विशेष

अधिकमास को पुरूषोत्तम मास कहे जाने का एक सांकेतिक अर्थ भी है। ऐसा माना जाता है कि यह मास हर व्यक्ति विशेष के लिए तन-मन से पवित्र होने का समय होता है। इस दौरान श्रद्धालुजन व्रत, उपवास, ध्यान, योग और भजन- कीर्तन- मनन में संलग्न रहते हैं और अपने आपको भगवान के प्रति समर्पित कर देते हैं। इस तरह यह समय सामान्य पुरूष से उत्तम बनने का होता है, मन के मैल धोने का होता है। यही वजह है कि इसे पुरूषोत्तम मास का नाम दिया गया है।

अधिकमास का पौराणिक आधार क्या है?

अधिक मास के लिए पुराणों में बड़ी ही सुंदर कथा सुनने को मिलती है। यह कथा दैत्यराज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। पुराणों के अनुसार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने एक बार ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर लिया और उनसे अमरता का वरदान मांगा। चूंकि अमरता का वरदान देना निषिद्ध है, इसीलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई भी अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर, नारी, पशु, देवता या असुर मार ना सके। वह वर्ष के 12 महीनों में मृत्यु को प्राप्त ना हो। जब वह मरे, तो ना दिन का समय हो, ना रात का। वह ना किसी अस्त्र से मरे, ना किसी शस्त्र से। उसे ना घर में मारा जा सके, ना ही घर से बाहर मारा जा सके। इस वरदान के मिलते ही हिरण्यकश्यप स्वयं को अमर मानने लगा और उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया। समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक मास में नरसिंह अवतार यानि आधा पुरूष और आधे शेर के रूप में प्रकट होकर, शाम के समय, देहरी के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का सीना चीन कर उसे मृत्यु के द्वार भेज दिया।

अधिकमास का महत्व क्या और क्यों है?

हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस पूरे मास में अपने धार्मिक और आध्यात्मिक प्रयासों से प्रत्येक व्यक्ति अपनी भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति और निर्मलता के लिए उद्यत होता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से समस्त कुंडली दोषों का भी निराकरण हो जाता है।

अधिकमास में क्या करना उचित और संपूर्ण फलदायी होता है

आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं।