Thursday, November 29, 2018

बिल्व पत्र की विशेषता

बिल्व पत्र की विशेषता
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भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेल पत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए तो उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है।

बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध  यह फल बहुत ही काम का है। यह जिस पेड़ पर लगता है वह शिवद्रुम भी कहलाता है। बिल्व का पेड़ संपन्नता का प्रतीक, बहुत पवित्र तथा समृद्धि देने वाला है।

बेल के पत्ते शंकर जी  का आहार माने गए हैं, इसलिए भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से इन्हें महादेव के ऊपर चढ़ाते हैं। शिव की पूजा के लिए बिल्व-पत्र बहुत ज़रूरी माना जाता है। शिव-भक्तों का विश्वास है कि पत्तों के त्रिनेत्रस्वरूप् तीनों पर्णक शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं।

भगवान शंकर का प्रिय
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भगवान शंकर को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। भांग धतूरा और बिल्व पत्र से प्रसन्न होने वाले केवल शिव ही हैं। शिवरात्रि के अवसर पर बिल्वपत्रों से विशेष रूप से शिव की पूजा की जाती है। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, किंतु कुछ ऐसे बिल्व पत्र भी होते हैं जो दुर्लभ पर चमत्कारिक और अद्भुत होते हैं।

बिल्वाष्टक और शिव पुराण
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बिल्व पत्र का भगवान शंकर के पूजन में विशेष महत्व है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। बिल्वाष्टक और शिव पुराण में इसका स्पेशल उल्लेख है। अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है।

मां भगवती को बिल्व पत्र
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श्रीमद् देवी भागवत में स्पष्ट वर्णन है कि जो व्यक्ति मां भगवती  को बिल्व पत्र अर्पित करता है वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं होता। उसे हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान भोले नाथ का प्रिय भक्त हो जाता है। उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बिल्व पत्र के प्रकार
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बिल्व पत्र चार प्रकार के होते हैं – अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों के बिल्व पत्र, छः से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र। इन सभी बिल्व पत्रों का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व है। आप हैरान हो जाएंगे ये जानकर की कैसे ये बेलपत्र आपको भाग्यवान बना सकते हैं और लक्ष्मी कृपा दिला सकते हैं।

अखंड बिल्व पत्र
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इसका विवरण बिल्वाष्टक में इस प्रकार है – ‘‘अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी’’। यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही इसका अपना विशेष महत्व है। यह वास्तुदोष का निवारण भी करता है। इसे गल्ले में रखकर नित्य पूजन करने से व्यापार में चैमुखी विकास होता है।

तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र
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इस बिल्व पत्र के महत्व का वर्णन भी बिल्वाष्टक में आया है जो इस प्रकार है- ‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम’’ यह तीन गणों से युक्त होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है। इसके साथ यदि एक फूल धतूरे का चढ़ा दिया जाए, तो फलों  में बहुत वृद्धि होती है।

इस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। रीतिकालीन कवि ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है- ‘‘देखि त्रिपुरारी की उदारता अपार कहां पायो तो फल चार एक फूल दीनो धतूरा को’’ भगवान आशुतोष त्रिपुरारी भंडारी सबका भंडार भर देते हैं।

आप भी फूल चढ़ाकर इसका चमत्कार स्वयं देख सकते हैं और सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र में अखंड बिल्व पत्र भी प्राप्त हो जाते हैं। कभी-कभी एक ही वृक्ष पर चार, पांच, छह पत्तियों वाले बिल्व पत्र भी पाए जाते हैं। परंतु ये बहुत दुर्लभ हैं।

10 छह से लेकर 21 पत्तियों वाले बिल्व पत्र
ये मुख्यतः नेपाल  में पाए जाते हैं। पर भारत में भी दक्षिण में कहीं-कहीं मिलते हैं। जिस तरह रुद्राक्ष कई मुखों वाले होते हैं उसी तरह बिल्व पत्र भी कई पत्तियों वाले होते हैं।

श्वेत बिल्व पत्र
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जिस तरह सफेद सांप, सफेद टांक, सफेद आंख, सफेद दूर्वा आदि होते हैं उसी तरह सफेद बिल्वपत्र भी होता है। यह प्रकृति  की अनमोल देन है। इस बिल्व पत्र के पूरे पेड़ पर श्वेत पत्ते पाए जाते हैं। इसमें हरी पत्तियां नहीं होतीं। इन्हें भगवान शंकर को अर्पित करने का विशेष महत्व है।

कैसे आया बेल वृक्ष
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बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी का वास माना गया है।

बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्र
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बिल्व-पत्र को सोच-विचार कर ही तोड़ना चाहिए। पत्ते तोड़ने से पहले यह मंत्र बोलना चाहिए-

अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥

अर्थ- अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।

पत्तियां कब न तोड़ें
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विशेष दिन या पर्वो के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना मना है। शास्त्रों के अनुसार इसकी पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए-
सोमवार के दिन चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को। संक्रांति के पर्व पर।

अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे ।
बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत ॥
(लिंगपुराण)

अर्थ
अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जित है।

क्या चढ़ाया गया बिल्व-पत्र भी चढ़ा सकते हैं
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शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्व-पत्र चढ़ाने से मना किया गया है तो यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन: चढ़ा सकते हैं।

अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित्॥
(स्कन्दपुराण, आचारेन्दु)

अर्थ- अगर भगवान शिव को अर्पित करने के लिए नूतन बिल्व-पत्र न हो तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।

विभिन्न रोगों की कारगर दवा
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बिल्व-पत्र-बिल्व का वृक्ष विभिन्न रोगों की कारगर दवा है। इसके पत्ते ही नहीं बल्कि विभिन्न अंग दवा के रूप में उपयोग किए जाते हैं। पीलिया, सूजन, कब्ज, अतिसार, शारीरिक दाह, हृदय की घबराहट, निद्रा, मानसिक तनाव, श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, आंखों के दर्द, रक्तविकार आदि रोगों में बिल्व के विभिन्न अंग उपयोगी होते हैं। इसके पत्तो को पानी से पकाकर उस पानी से किसी भी तरह के जख्म को धोकर उस पर ताजे पत्ते पीसकर बांध देने से वह शीघ्र ठीक हो जाता है।

पूजन में महत्व
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वस्तुत: बिल्व पत्र हमारे लिए उपयोगी वनस्पति है। यह हमारे कष्टों को दूर करती है। भगवान शिव को चढ़ाने का भाव यह होता है कि जीवन में हम भी लोगों के संकट में काम आएं। दूसरों के दु:ख के समय काम आने वाला व्यक्ति या वस्तु भगवान शिव को प्रिय है। सारी वनस्पतियां भगवान की कृपा से ही हमें मिली हैं अत: हमारे अंदर पेड़ों के प्रति सद्भावना होती है। यह भावना पेड़-पौधों की रक्षा व सुरक्षा के लिए स्वत: प्रेरित करती है। पूजा में चढ़ाने का मंत्र-भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यह मंत्र बोलकर चढ़ाया जाता है। यह मंत्र बहुत पौराणिक है।

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥

अर्थ- तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।

रुद्राष्टाध्यायी के इस मन्त्र को बोलकर बिल्वपत्र चढ़ाने का विशेष महत्त्व एवं फल है।
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नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने चनमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
🙏🙏🙏🙏🙏

Friday, November 23, 2018

राजा औऱ नौकर [सरकार और सरकारी ]

राजा औऱ नौकर [सरकार और सरकारी ]

एक राजा को मलाई रबड़ी खाने का शौक था ।
उसे रात में सोने से पहले मलाई रबड़ी खाए बिना नीद नहीं आती थी ।
इसके लिए राजा ने सुनिश्चित किया कि *खजांची* (जो राज्य के धन का लेखा जोखा रखता है) एक नौकर को रोजाना चार आने दे मलाई लाने के लिए । यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा ।

कुछ समय बाद खजांची को शक हुआ कि कहीं *नौकर* चार आने की मलाई में गड़बड़ तो नहीं कर रहा । उसने चुपचाप नौकर पर नजर रखनी शुरू कर दी ।

खजांची ने पाया कि नौकर केवल तीन आने की मलाई लाता है और एक आना बचा लेता है ।
अपनी चोरी पकड़ी जाने पर नौकर ने खजांची को एक आने की रिश्वत देना शुरू कर दिया ।
अब राजा को दो आने की मलाई रबड़ी मिलती जिसे वह *चार आने* की समझ कर खाता ।
कुछ दिन बाद राजा को शक हुआ कि मलाई की मात्रा में कमी हो रही है ।

राजा ने अपने *खास मंत्री* को अपनी शंका बतलाई और असलियत पता करने को कहा ।
मंत्री ने पूछताछ शुरू की । खजांची ने एक आने का प्रस्ताव मंत्री को दे दिया ।

अब हालात ये हुए कि नौकर को केवल दो आने मिलते जिसमें से एक आना नौकर रख लेता और केवल एक आने की मलाई रबड़ी राजा के लिए ले जाता ।

कुछ दिन बीते । इधर हलवाई जिसकी दुकान से रोजाना मलाई रबड़ी जाती थी उसे संदेह हुआ कि पहले चार आने की मलाई जाती थी अब घटते घटते एक आने की रह गई ।

*हलवाई* ने नौकर को पूछना शुरू किया और राजा को बतलाने की धमकी दी ।
नौकर ने पूरी बात खजांची को बतलाई और खजांची ने मंत्री को ।
अंत में यह तय हुआ कि एक आना हलवाई को भी दे दिया जाए ।

अब *समस्या* यह हुई कि मलाई कहां से आएगी और राजा को क्या बताया जाएगा ।
इसकी जिम्मेदारी मंत्री ने ले ली।
इस घटना के बाद पहली बार ऐसा हुआ कि राजा को मलाई की प्रतीक्षा करते नींद आ गयी ।
इसी समय मंत्री ने राजा की मूछों पर सफेद चाक(खड़िया) का घोल लगा दिया ।
अगले दिन राजा ने उठते ही नौकर को बुलाया तो मंत्री और खजांची भी दौड़े आए।

राजा ने पूछा -कल मलाई क्यों नही लाऐ ।
नौकर ने खजांची और मंत्री की ओर देखा ।
मंत्री बोला - हुजर यह लाया था, आप सो गए थे इसलिए मैने आपको सोते में ही खिला दी।
देखिए अभी तक आपकी मूछों में भी लगी है।
यह कहकर उसने राजा को आईना दिखाया।
मूछों पर लगी सफेदी को देखकर राजा को विश्वास हो गया कि उसने मलाई खाई थी।
अब यह रोज का क्रम हो गया, खजाने से चार आने निकलते और बंट जाते और
राजा के मुंह पर सफेदी लग जाती ।

बचपन की सुनी यह कहानी आज के समय में भी सामयिक है ।

आप कल्पना करें कि *आम जनता राजा* है, *मंत्री हमारे नेता* हैं और *अधिकारी व ठेकेदार क्रमश: खजांची और हलवाई* हैं ।

पैसा भले कामों के लिए निकल रहा है और आम आदमी को चूना दिखाकर संतुष्ट किया जा रहा है।

हम कहां जा रहे हें  🙏🙏🙏🙏🙏

Wednesday, November 14, 2018

बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज

बाबर ने मुश्किल से कोई 4 वर्ष राज किया। हुमायूं को ठोक पीटकर भगा दिया। मुग़ल साम्राज्य की नींव अकबर ने डाली और जहाँगीर, शाहजहाँ से होते हुए औरंगजेब आते आते उखड़ गया।*
*कुल 100 वर्ष (अकबर 1556ई. से औरंगजेब 1658ई. तक) के समय के स्थिर शासन को मुग़ल काल नाम से इतिहास में एक पूरे पार्ट की तरह पढ़ाया जाता है....*
*मानो सृष्टि आरम्भ से आजतक के कालखण्ड में तीन भाग कर बीच के मध्यकाल तक इन्हीं का राज रहा....!*

*अब इस स्थिर (?) शासन की तीन चार पीढ़ी के लिए कई किताबें, पाठ्यक्रम, सामान्य ज्ञान, प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न, विज्ञापनों में गीत, ....इतना हल्ला मचा रखा है, मानो पूरा मध्ययुग इन्हीं 100 वर्षों के इर्द गिर्द ही है।*

*जबकि उक्त समय में मेवाड़ इनके पास नहीं था। दक्षिण और पूर्व भी एक सपना ही था।*
*अब जरा विचार करें..... क्या भारत में अन्य तीन चार पीढ़ी और शताधिक वर्ष पर्यन्त राज्य करने वाले वंशों को इतना महत्त्व या स्थान मिला है ?*
*अकेला विजयनगर साम्राज्य ही 300 वर्ष तक टिका रहा। हीरे माणिक्य की हम्पी नगर में मण्डियां लगती थीं।महाभारत युद्ध के बाद 1006 वर्ष तक जरासन्ध वंश के 22 राजाओं ने । 5 प्रद्योत वंश के राजाओं ने 138 वर्ष , 10 शैशुनागों ने 360 वर्षों तक , 9 नन्दों ने 100 वर्षों तक , 12 मौर्यों ने 316 वर्ष तक , 10 शुंगों ने 300 वर्ष तक , 4 कण्वों ने 85 वर्षों तक , 33 आंध्रों ने 506 वर्ष तक , 7 गुप्तों ने 245 वर्ष तक राज्य किया ।*
*फिर विक्रमादित्य ने 100 वर्षों तक राज्य किया था । इतने महान् सम्राट होने पर भी भारत के इतिहास में गुमनाम कर दिए गए ।*

*उनका वर्णन करते समय इतिहासकारों को मुँह का कैंसर हो जाता है। सामान्य ज्ञान की किताबों में पन्ने कम पड़ जाते है। पाठ्यक्रम के पृष्ठ सिकुड़ जाते है। प्रतियोगी परीक्षकों के हृदय पर हल चल जाते हैं।*
*वामपंथी इतिहासकारों ने नेहरूवाद का मल भक्षण कर, जो उल्टियाँ की उसे ज्ञान समझ चाटने वाले चाटुकारों...!*
*तुम्हे धिक्कार है !!!*

*यह सब कैसे और किस उद्देश्य से किया गया ये अभी तक हम ठीक से समझ नहीं पाए हैं और ना हम समझने का प्रयास कर रहे हैं।*

एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हिन्दू योद्धाओं को इतिहास से बाहर कर सिर्फ मुगलों को महान बतलाने वाला नकली इतिहास पढ़ाया जाता है। महाराणा प्रताप के स्थान पर अत्याचारी व अय्याश अकबर को महान होना लिख दिया है। अब यदि इतिहास में हिन्दू योद्धाओं को सम्मिलित करने का प्रयास किया जाता है तो कांग्रेस शिक्षा के भगवा करण करने का आरोप लगाती है।

*नोट : दबाकर कॉपी-पेस्ट करें.... ताकी इस आलेख का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार हो सके !*
*जय हिंद
[11/13, 11:15 AM] ‪+91 85439 78763‬: 📒🍥📒🍥📒🍥📒🍥📒🍥📒

🌻 *ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ❓*🌻

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🌻 *ब्रह्म मुहूर्त में उठने की परंपरा क्यों ❓*🌻

💗 रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।

💗 ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।

💗 *“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।*
*(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।*)*

🍥 सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।

🍥 ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।

📒 पौराणिक महत्व -- वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।

📚 *शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है--*

🍥 वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥
🔮 अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।

🌹🌹 *ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति* 🌹🌹

🍥 ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।

💎 *इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि*💎

🍏 आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।

🌻ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।

🌻ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।

📚वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।

🌻प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1
अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।
यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35

🍥 अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।
उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।

📒 अथर्ववेद- 7/16/२
अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।

🔮 व्यावहारिक महत्व - व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।

🌻🍥 *जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या :-*-🍥🌻

🌹प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।

🌹प्रातः 5 से 7 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान का लेना चाहिए । सुबह 7 के बाद जो मल-त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।

प्रातः 7 से 9 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये।

🍥 प्रातः 11 से 1 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है।

🍥 दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसी लिए भोजन वर्जित है । इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है ।

💎 दोपहर 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।

💎 दोपहर 3 से 5 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।

💗 शाम 5 से 7 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है । इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए । शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करे। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते है । देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।

💗 रात्री 7 से 9 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टी हुई है।

💗 रात्री 9 से 11 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है । यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।

💎🍥 रात्री 11 से 1 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएं बनती है ।

💗💎 रात्री 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।

🔮🔮🔮🔮 *नोट :-*🔮🔮🔮🔮

🧘‍♂🧘‍♂ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखे, जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबुफे डिनरʹ से बचना चाहिए।

🌎 पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।

🍏 शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।

🔮🍥 आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ी के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा। इस प्रकार थोड़ी-सी सजगता हमें स्वस्थ जीवन की प्राप्ति करा देगी।

*सब सुखी और निरोगी हों !!*

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