Friday, November 2, 2018

हनुमानजी में अतुलित बल है ।इसका मापदंड क्या है?

हनुमानजी में अतुलित बल है ।इसका मापदंड क्या है?

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पुराने समय में बल की माप हाथियों की शक्ति से की जाती थी ।आजकल तो लोगों में उतना बल ही नहीं है,
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इसलिए आजकल घोड़े की शक्ति (Horse Power- अश्व शक्ति )से बल की माप को दर्शाया जाता है ।
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कहते हैं कि दुःशासन में दस हजार हाथियों का बल था फिर भी वह द्रौपदी की साड़ी खींचते खींचते हताश हो गया था ।
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हनुमानजी के बल के विषय में आप ऐसे समझ सकते हैं --
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10000 हाथी = एक दिग्गज
10000 दिग्गज = एक ऐरावत
10000 ऐरावत = एक इन्द्र
10000 इन्द्र =
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हनुमान जी की सबसे छोटी कनिष्ठा उंगली का बल।

अब आप समझ सकते हैं कि हनुमानजी में कितना बल है ।

इसीलिए
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तुलसीदास जी भी कहते हैं --
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(अतुलितबलधामम् *****।)
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हनुमानजी की विशेषता देखिए
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इतने बलशाली होकर भी उनमें कोई अभिमान नहीं है ।वे कहते हैं कि मुझमें कोई बल नहीं है ।

समुद्र लाँघने के समय सब वानरों ने अपने अपने बल का बखान किया।किसी ने पूछा कि हनुमानजी आप कैसे चुप हैं? आपने अपने बल के बारे में कुछ नहीं कहा ।
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हनुमानजी बोले --मुझमें कोई बल ही नहीं है, जो मैं बखान करूँ ।कहा कि आप तो अतुलितबलधामम् कहे जाते हैं । हनुमानजी बोले - हाँ ! सही है ।धाम का अर्थ है,
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घर या मकान ।तो मुझमें जो बल है, वह मेरा नहीं है, क्योंकि मकान में जो होता है,
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बह मकान का नही होता, मकान मालिक का होता है, जो उस घर में रहता होता है, उसी का होता है ।
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तो आपके अंदर कौन रहता है ।हनुमानजी बोले- हमारे हृदय में तो प्रभु राम जी रहते हैं,
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इसीलिए बल भी उन्हीं का है।किसी ने कहा --इसका प्रमाण? बोले प्रमाण भी है ।
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जब इन्द्र पुत्र जयंत कौआ बनकर सीता जी के चरणों कोे चोंच के द्वारा घायल कर गया था ।तब राम जी ने सींक का बाण उसके पीछे लगा दिया था ।
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वह पूरे ब्रह्माण्ड में शरण माँगता फिरा।किसी ने शरण नहीं दी।
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(काहूँ बैठन कहा न ओही।
राखि को सकै राम कर द्रोही।।)
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जो भगवान राम से द्रोह करे, उसे कौन बचाबे।नारद जी को उस पर दया आ गयी।
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उन्होंने उसे तुरंत श्री राम जी के पास भेज दिया।उसने जाकर प्रार्थना की और चरण पकड़ लिए ।
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(आतुर सभय गहेसि पद जाई।
त्राहि त्राहि दयाल रघुराई ।।
अतुलित बल अतुलित प्रभुताई।
मैं मतिमंद जानि नहिं पाई।।)
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प्रभु !! रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए ।आपके अतुलित बल और अतुलित प्रभुता (सामर्थ्य )को मैं मंदबुद्धि जान नहीं पाया था ।तो अतुलित बल राम जी का है और राम जी ही मेरे हृदय में निवास करते हैं,
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इसलिए बल तो उन्हीं का है।मैं तो केवल उनके बल का धाम हूँ । कितनी निरभिमानता?
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महावीर होकर भी कहते हैं कि यह तो भगवान का बल है।
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इसीलिए उनका नाम हनुमान है, कोई मान (अभिमान) ही नहीं ।

जय जय सियाराम
जय हनुमान

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