Thursday, January 24, 2019

गरुड़ पुराण के छत्तीस 🔥नरकों🔥 का विवरण

जय श्री हरी ,,गरुड़ पुराण के छत्तीस 🔥नरकों🔥 का विवरण ➡ :
गरुड़ पुराणः ये हैं 36 नर्क, जानिए किसमें कैसे दी जाती है सजाl
हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखी अनेक कथाओं में स्वर्ग और नर्क के बारे में बताया गया है। पुराणों के अनुसार स्वर्ग वह स्थान होता है जहां देवता रहते हैं और अच्छे कर्म करने वाले इंसान की आत्मा को भी वहां स्थान मिलता है, इसके विपरीत बुरे काम करने वाले लोगों को नर्क भेजा जाता है, जहां उन्हें सजा के तौर पर गर्म तेल में तला जाता है और अंगारों पर सुलाया जाता है।

हिंदू धर्म के पौराणिक ग्रंथों ने 36 तरह के मुख्य नर्कों का वर्णन किया गया है। अलग-अलग कर्मों के लिए इन नर्कों में सजा का प्रावधान भी माना गया है। गरूड़ पुराण, अग्रिपुराण, कठोपनिषद जैसे प्रामाणिक ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है। आज हम आपको उन नर्कों के बारे में संक्षिप्त रूप से बता रहे हैं-
1. महावीचि
2. कुंभीपाक
3. रौरव
4. मंजूष
5. अप्रतिष्ठ
6. विलेपक
7. महाप्रभ
8. जयंती
9. शाल्मलि
10. महारौरव
11. तामिस्र
12. महातामिस्र
13. असिपत्रवन
14. करम्भ बालुका
15. काकोल
16. कुड्मल
17. महाभीम
18. महावट
19. तिलपाक
20. तैलपाक
21. वज्रकपाट
22. निरुच्छवास
23. अंगारोपच्य
24. महापायी
25. महाज्वाल
26. क्रकच
27. गुड़पाक
28. क्षुरधार
29. अम्बरीष
30. वज्रकुठार
31. परिताप
32. काल सूत्र
33. कश्मल
34. उग्रगंध
35. दुर्धर
36. वज्रमहापीड
1. महावीचि- यह नर्क पूरी तरह रक्त यानी खून से भरा है और इसमें लोहे के बड़े-बड़े कांटे हैं। जो लोग गाय की हत्या करते हैं, उन्हें इस नर्क में यातना भुगतनी पड़ती है।
2. कुंभीपाक- इस नर्क की जमीन गरम बालू और अंगारों से भरी है। जो लोग किसी की भूमि हड़पते हैं या ब्राह्मण की हत्या करते हैं। उन्हें इस नर्क में आना पड़ता है।
3. रौरव- यहां लोहे के जलते हुए तीर होते हैं। जो लोग झूठी गवाही देते हैं उन्हें इन तीरों से बींधा जाता है।
4. मंजूष- यह जलते हुए लोहे जैसी धरती वाला नर्क है। यहां उनको सजा मिलती है, जो दूसरों को निरपराध बंदी बनाते हैं या कैद में रखते हैं।
5. अप्रतिष्ठ- यह पीब, मूत्र और उल्टी से भरा नर्क है। यहां वे लोग यातना पाते हैं, जो ब्राह्मणों को पीड़ा देते हैं या सताते हैं।
6. विलेपक- यह लाख की आग से जलने वाला नर्क है। यहां उन ब्राह्मणों को जलाया जाता है, जो शराब पीते हैं।
7. महाप्रभ- इस नर्क में एक बहुत बड़ा लोहे का नुकीला तीर है। जो लोग पति-पत्नी में फूट डालते हैं, पति-पत्नी के रिश्ते तुड़वाते हैं वे यहां इस तीर में पिरोए जाते हैं।
8. जयंती- यहां जीवात्माओं को लोहे की बड़ी चट्टान के नीचे दबाकर सजा दी जाती है। जो लोग पराई औरतों के साथ संभोग करते हैं, वे यहां लाए जाते हैं।
9. शाल्मलि- यह जलते हुए कांटों से भरा नर्क है। जो औरत कई पुरुषों से संभोग करती है व जो व्यक्ति हमेशा झूठ व कड़वा बोलता है, दूसरों के धन और स्त्री पर नजर डालता है। पुत्रवधू, पुत्री, बहन आदि से शारीरिक संबंध बनाता है व वृद्ध की हत्या करता है, ऐसे लोगों को यहां लाया जाता है।
10. महारौरव- इस नर्क में चारों तरफ आग ही आग होती है। जैसे किसी भट्टी में होती है। जो लोग दूसरों के घर, खेत, खलिहान या गोदाम में आग लगाते हैं, उन्हें यहां जलाया जाता है।
11. तामिस्र- इस नर्क में लोहे की पट्टियों और मुग्दरों से पिटाई की जाती है। यहां चोरों को यातना मिलती है।
12. महातामिस्र- इस नर्क में जौंके भरी हुई हैं, जो इंसान का रक्त चूसती हैं। माता, पिता और मित्र की हत्या करने वाले को इस नर्क में जाना पड़ता है।
13. असिपत्रवन- यह नर्क एक जंगल की तरह है, जिसके पेड़ों पर पत्तों की जगह तीखी तलवारें और खड्ग हैं। मित्रों से दगा करने वाला इंसान इस नर्क में गिराया जाता है।
14. करम्भ बालुका- यह नर्क एक कुएं की तरह है, जिसमें गर्म बालू रेत और अंगारे भरे हुए हैं। जो लोग दूसरे जीवों को जलाते हैं, वे इस कुएं में गिराए जाते हैं।
15. काकोल- यह पीब और कीड़ों से भरा नर्क है। जो लोग छुप-छुप कर अकेले ही मिठाई खाते हैं, दूसरों को नहीं देते, वे इस नर्क में लाए जाते हैं।
16. कुड्मल- यह मूत्र, पीब और विष्ठा (उल्टी) से भरा है। जो लोग दैनिक जीवन में पंचयज्ञों ( ब्रह्मयज्ञ, देवयज्ञ, भूतयज्ञ, पितृयज्ञ, मनुष्य यज्ञ) का अनुष्ठान नहीं करते वे इस नर्क में आते हैं।
17. महाभीम- यह नर्क बदबूदार मांस और रक्त से भरा है। जो लोग ऐसी चीजें खाते हैं, जिनका शास्त्रों ने निषेध बताया है, वो लोग इस नर्क में गिरते हैं।
18. महावट- इस नर्क में मुर्दे और कीड़े भरे हैं, जो लोग अपनी लड़कियों को बेचते हैं, वे यहां लाए जाते हैं।
19. तिलपाक- यहां दूसरों को सताने, पीड़ा देने वाले लोगों को तिल की तरह पेरा जाता है। जैसे तिल का तेल निकाला जाता है, ठीक उसी तरह।
20. तैलपाक- इस नर्क में खौलता हुआ तेल भरा है। जो लोग मित्रों या शरणागतों की हत्या करते हैं, वे यहां इस तेल में तले जाते हैं।
21. वज्रकपाट- यहां वज्रों की पूरी श्रंखला बनी है। जो लोग दूध बेचने का व्यवसाय करते हैं, वे यहां प्रताड़ना पाते हैं।
22. निरुच्छवास- इस नर्क में अंधेरा है, यहां वायु नहीं होती। जो लोग दिए जा रहे दान में विघ्न डालते हैं वे यहां फेंके जाते हैं।
23. अंगारोपच्य- यह नर्क अंगारों से भरा है। जो लोग दान देने का वादा करके भी दान देने से मुकर जाते हैं। वे यहां जलाए जाते हैं।
24. महापायी- यह नर्क हर तरह की गंदगी से भरा है। हमेशा असत्य बोलने वाले यहां औंधे मुंह गिराए जाते हैं।
25. महाज्वाल- इस नर्क में हर तरफ आग है। जो लोग हमेशा ही पाप में लगे रहते हैं वे इसमें जलाए जाते हैं।
26. गुड़पाक- यहां चारों ओर गरम गुड़ के कुंड हैं। जो लोग समाज में वर्ण संकरता फैलाते हैं, वे इस गुड़ में पकाए जाते हैं।
27. क्रकच- इस नर्क में तीखे आरे लगे हैं। जो लोग ऐसी महिलाओं से संभोग करते हैं, जिसके लिए शास्त्रों ने निषेध किया है, वे लोग इन्हीं आरों से चीरे जाते हैं।
28. क्षुरधार- यह नर्क तीखे उस्तरों से भरा है। ब्राह्मणों की भूमि हड़पने वाले यहां काटे जाते हैं।
29. अम्बरीष- यहां प्रलय अग्रि के समान आग जलती है। जो लोग सोने की चोरी करते हैं, वे इस आग में जलाए जाते हैं।
30. वज्रकुठार- यह नर्क वज्रों से भरा है। जो लोग पेड़ काटते हैं वे यहां लंबे समय तक वज्रों से पीटे जाते हैं।
31. परिताप- यह नर्क भी आग से जल रहा है। जो लोग दूसरों को जहर देते हैं या मधु (शहद) की चोरी करते हैं, वे यहां जलाए जाते हैं।
32. काल सूत्र- यह वज्र के समान सूत से बना है। जो लोग दूसरों की खेती नष्ट करते हैं। वे यहां सजा पाते हैं।
33. कश्मल- यह नर्क नाक और मुंह की गंदगी से भरा होता है। जो लोग मांसाहार में ज्यादा रुचि रखते हैं, वे यहां गिराए जाते हैं।
34. उग्रगंध- यह लार, मूत्र, विष्ठा और अन्य गंदगियों से भरा नर्क है। जो लोग पितरों को पिंडदान नहीं करते, वे यहां लाए जाते हैं।
35. दुर्धर- यह नर्क जौक और बिच्छुओं से भरा है। सूदखोर और ब्याज का धंधा करने वाले इस नर्क में भेजे जाते हैं।
36. वज्रमहापीड- यहां लोहे के भारी वज्र से मारा जाता है। जो लोग सोने की चोरी करते हैं, किसी प्राणी की हत्या कर उसे खाते हैं, दूसरों के आसन, शय्या और वस्त्र चुराते हैं, जो दूसरों के फल चुराते हैं, धर्म को नहीं मानते ऐसे सारे लोग यहां लाए जाते हैं।

➡ : उन कामों के बारे में जानिए, जिन्हें करने से नर्क जाना पड़ता है।
1. जो कुएं, तालाब, प्याऊ और मार्ग आदि को हानि पहुंचाते हैं, ऐसे दुष्ट नरक में जाते हैं।
2. आत्महत्या, स्त्री हत्या, गर्भ हत्या, ब्रह्म हत्या, गौ हत्या करने वाला, झूठी गवाही देने वाला, कन्या को बेचने वाला, झूठ बोलने वाले लोग नर्क में जाते हैं।
3. जो लोग भगवान शिव और विष्णु का चिंतन नहीं करते, उन्हें नर्क में जाना पड़ता है।
4. ऋषियों, सतियों और वेदों की निंदा करने वाले लोग सदैव नर्क में ही जाते हैं।
5. भूख-प्यास से थक कर जो भिखारी किसी के घर जाता हो और उसे वहां से अपमानित होकर लौटना पड़े, तो ऐसे याचक (मांगने वाला) का अपमान करने वाले नरक में जाते हैं।
6. जो शराब, मांस, गीत, जुआं आदि व्यसनों में ही दिन-रात लगे रहते हैं, ऐसे लोगों को नरक ही प्राप्त होता है।
7. जो अपनी पत्नी, बच्चों, नौकरों और मेहमानों को खिलाए बिना ही खाते हैं और पितरों तथा देवताओं की पूजा छोड़ देते हैं, ऐसे लोग नरक में जाते हैं।
8. दूसरों का धन हड़पने वाले, दूसरों के गुणों में दोष देखने वाले तथा दूसरों से ईष्र्या करने वाले नरक में जाते हैं।
9. जो अनाथ, गरीब, रोगी, बूढ़े और दयनीय लोगों पर दया नहीं करता, वह नरक में जाता है।
10. ब्राह्मण होकर शराब व मांस का सेवन करने वाला, ब्राह्मण की जीविका नष्ट करने वाला और दूसरों की संपत्ति का हरण करने वाला, ये सभी नर्क को ही प्राप्त होते हैं।

➡ :इन नरकों से बचने का एक मात्र हरि नाम ही सहारा है. हरि नाम जितना ले सकते हैं लें प्रेम से बोलिए ''जय श्री हरी'' ''जय श्री कृष्ण'' 🌹👏 🌞🌞🌞.

बिल्व पत्र की विशेषता

बिल्व पत्र की विशेषता
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भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेल पत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए तो उन्हें आशुतोष भी कहा जाता है।

बिल्व तथा श्रीफल नाम से प्रसिद्ध  यह फल बहुत ही काम का है। यह जिस पेड़ पर लगता है वह शिवद्रुम भी कहलाता है। बिल्व का पेड़ संपन्नता का प्रतीक, बहुत पवित्र तथा समृद्धि देने वाला है।

बेल के पत्ते शंकर जी  का आहार माने गए हैं, इसलिए भक्त लोग बड़ी श्रद्धा से इन्हें महादेव के ऊपर चढ़ाते हैं। शिव की पूजा के लिए बिल्व-पत्र बहुत ज़रूरी माना जाता है। शिव-भक्तों का विश्वास है कि पत्तों के त्रिनेत्रस्वरूप् तीनों पर्णक शिव के तीनों नेत्रों को विशेष प्रिय हैं।

भगवान शंकर का प्रिय
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भगवान शंकर को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। भांग धतूरा और बिल्व पत्र से प्रसन्न होने वाले केवल शिव ही हैं। शिवरात्रि के अवसर पर बिल्वपत्रों से विशेष रूप से शिव की पूजा की जाती है। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं, किंतु कुछ ऐसे बिल्व पत्र भी होते हैं जो दुर्लभ पर चमत्कारिक और अद्भुत होते हैं।

बिल्वाष्टक और शिव पुराण
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बिल्व पत्र का भगवान शंकर के पूजन में विशेष महत्व है जिसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। बिल्वाष्टक और शिव पुराण में इसका स्पेशल उल्लेख है। अन्य कई ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शंकर एवं पार्वती को बिल्व पत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है।

मां भगवती को बिल्व पत्र
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श्रीमद् देवी भागवत में स्पष्ट वर्णन है कि जो व्यक्ति मां भगवती  को बिल्व पत्र अर्पित करता है वह कभी भी किसी भी परिस्थिति में दुखी नहीं होता। उसे हर तरह की सिद्धि प्राप्त होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और वह भगवान भोले नाथ का प्रिय भक्त हो जाता है। उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।

बिल्व पत्र के प्रकार
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बिल्व पत्र चार प्रकार के होते हैं – अखंड बिल्व पत्र, तीन पत्तियों के बिल्व पत्र, छः से 21 पत्तियों तक के बिल्व पत्र और श्वेत बिल्व पत्र। इन सभी बिल्व पत्रों का अपना-अपना आध्यात्मिक महत्व है। आप हैरान हो जाएंगे ये जानकर की कैसे ये बेलपत्र आपको भाग्यवान बना सकते हैं और लक्ष्मी कृपा दिला सकते हैं।

अखंड बिल्व पत्र
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इसका विवरण बिल्वाष्टक में इस प्रकार है – ‘‘अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वरे सिद्धर्थ लक्ष्मी’’। यह अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। एकमुखी रुद्राक्ष के समान ही इसका अपना विशेष महत्व है। यह वास्तुदोष का निवारण भी करता है। इसे गल्ले में रखकर नित्य पूजन करने से व्यापार में चैमुखी विकास होता है।

तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र
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इस बिल्व पत्र के महत्व का वर्णन भी बिल्वाष्टक में आया है जो इस प्रकार है- ‘‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम् त्रिजन्म पाप सहारं एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम’’ यह तीन गणों से युक्त होने के कारण भगवान शिव को प्रिय है। इसके साथ यदि एक फूल धतूरे का चढ़ा दिया जाए, तो फलों  में बहुत वृद्धि होती है।

इस तरह बिल्व पत्र अर्पित करने से भक्त को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। रीतिकालीन कवि ने इसका वर्णन इस प्रकार किया है- ‘‘देखि त्रिपुरारी की उदारता अपार कहां पायो तो फल चार एक फूल दीनो धतूरा को’’ भगवान आशुतोष त्रिपुरारी भंडारी सबका भंडार भर देते हैं।

आप भी फूल चढ़ाकर इसका चमत्कार स्वयं देख सकते हैं और सिद्धि प्राप्त कर सकते हैं। तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र में अखंड बिल्व पत्र भी प्राप्त हो जाते हैं। कभी-कभी एक ही वृक्ष पर चार, पांच, छह पत्तियों वाले बिल्व पत्र भी पाए जाते हैं। परंतु ये बहुत दुर्लभ हैं।

10 छह से लेकर 21 पत्तियों वाले बिल्व पत्र
ये मुख्यतः नेपाल  में पाए जाते हैं। पर भारत में भी दक्षिण में कहीं-कहीं मिलते हैं। जिस तरह रुद्राक्ष कई मुखों वाले होते हैं उसी तरह बिल्व पत्र भी कई पत्तियों वाले होते हैं।

श्वेत बिल्व पत्र
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जिस तरह सफेद सांप, सफेद टांक, सफेद आंख, सफेद दूर्वा आदि होते हैं उसी तरह सफेद बिल्वपत्र भी होता है। यह प्रकृति  की अनमोल देन है। इस बिल्व पत्र के पूरे पेड़ पर श्वेत पत्ते पाए जाते हैं। इसमें हरी पत्तियां नहीं होतीं। इन्हें भगवान शंकर को अर्पित करने का विशेष महत्व है।

कैसे आया बेल वृक्ष
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बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में ‘स्कंदपुराण’ में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी का वास माना गया है।

बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्र
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बिल्व-पत्र को सोच-विचार कर ही तोड़ना चाहिए। पत्ते तोड़ने से पहले यह मंत्र बोलना चाहिए-

अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।
गृह्यामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात्॥

अर्थ- अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।

पत्तियां कब न तोड़ें
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विशेष दिन या पर्वो के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना मना है। शास्त्रों के अनुसार इसकी पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए-
सोमवार के दिन चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को। संक्रांति के पर्व पर।

अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे ।
बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत ॥
(लिंगपुराण)

अर्थ
अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जित है।

क्या चढ़ाया गया बिल्व-पत्र भी चढ़ा सकते हैं
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शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्व-पत्र चढ़ाने से मना किया गया है तो यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन: चढ़ा सकते हैं।

अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित्॥
(स्कन्दपुराण, आचारेन्दु)

अर्थ- अगर भगवान शिव को अर्पित करने के लिए नूतन बिल्व-पत्र न हो तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।

विभिन्न रोगों की कारगर दवा
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बिल्व-पत्र-बिल्व का वृक्ष विभिन्न रोगों की कारगर दवा है। इसके पत्ते ही नहीं बल्कि विभिन्न अंग दवा के रूप में उपयोग किए जाते हैं। पीलिया, सूजन, कब्ज, अतिसार, शारीरिक दाह, हृदय की घबराहट, निद्रा, मानसिक तनाव, श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, आंखों के दर्द, रक्तविकार आदि रोगों में बिल्व के विभिन्न अंग उपयोगी होते हैं। इसके पत्तो को पानी से पकाकर उस पानी से किसी भी तरह के जख्म को धोकर उस पर ताजे पत्ते पीसकर बांध देने से वह शीघ्र ठीक हो जाता है।

पूजन में महत्व
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वस्तुत: बिल्व पत्र हमारे लिए उपयोगी वनस्पति है। यह हमारे कष्टों को दूर करती है। भगवान शिव को चढ़ाने का भाव यह होता है कि जीवन में हम भी लोगों के संकट में काम आएं। दूसरों के दु:ख के समय काम आने वाला व्यक्ति या वस्तु भगवान शिव को प्रिय है। सारी वनस्पतियां भगवान की कृपा से ही हमें मिली हैं अत: हमारे अंदर पेड़ों के प्रति सद्भावना होती है। यह भावना पेड़-पौधों की रक्षा व सुरक्षा के लिए स्वत: प्रेरित करती है। पूजा में चढ़ाने का मंत्र-भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यह मंत्र बोलकर चढ़ाया जाता है। यह मंत्र बहुत पौराणिक है।

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥

अर्थ- तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।

रुद्राष्टाध्यायी के इस मन्त्र को बोलकर बिल्वपत्र चढ़ाने का विशेष महत्त्व एवं फल है।
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नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने चनमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम्‌ पापनाशनम्‌। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्‌। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्‌॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्‌। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्‌॥गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
🙏🙏🙏🙏🙏

एक बार एक नदी में हाथी की लाश बही जा रही थी। एक कौए ने लाश देखी, तो प्रसन्न हो उठा, तुरंत उस पर आ बैठा। . यथेष्ट मांस खाया। नदी का जल पिया। उस लाश पर इधर-उधर फुदकते हुए कौए ने परम तृप्ति की डकार ली। . वह सोचने लगा, अहा ! यह तो अत्यंत सुंदर यान है, यहां भोजन और जल की भी कमी नहीं। फिर इसे छोड़कर अन्यत्र क्यों भटकता फिरूं ? . कौआ नदी के साथ बहने वाली उस लाश के ऊपर कई दिनों तक रमता रहा.. भूख लगने पर वह लाश को नोचकर खा लेता, प्यास लगने पर नदी का पानी पी लेता। . अगाध जलराशि, उसका तेज प्रवाह, किनारे पर दूर-दूर तक फैले प्रकृति के मनोहरी दृश्य-इन्हें देख-देखकर वह विभोर होता रहा। . नदी एक दिन आखिर महासागर में मिली। वह मुदित थी कि उसे अपना गंतव्य प्राप्त हुआ। . सागर से मिलना ही उसका चरम लक्ष्य था, किंतु उस दिन लक्ष्यहीन कौए की तो बड़ी दुर्गति हो गई। . चार दिन की मौज-मस्ती ने उसे ऐसी जगह ला पटका था, जहां उसके लिए न भोजन था, न पेयजल और न ही कोई आश्रय। सब ओर सीमाहीन अनंत खारी जल-राशि तरंगायित हो रही थी। . कौआ थका-हारा और भूखा-प्यासा कुछ दिन तक तो चारों दिशाओं में पंख फटकारता रहा, अपनी छिछली और टेढ़ी-मेढ़ी उड़ानों से झूठा रौब फैलाता रहा, किंतु महासागर का ओर-छोर उसे कहीं नजर नहीं आया। . आखिरकार थककर, दुख से कातर होकर वह सागर की उन्हीं गगनचुंबी लहरों में गिर गया। एक विशाल मगरमच्छ उसे निगल गया। ** शारीरिक सुख में लिप्त मनुष्यों की भी गति उसी कौए की तरह होती है, जो आहार और आश्रय को ही परम गति मानते हैं और अंत में अनन्त संसार रूपी सागर में समा जाते है। . जीत किसके लिए, हार किसके लिए ज़िंदगी भर ये तकरार किसके लिए.. जो भी आया है वो जायेगा एक दिन फिर ये इतना अहंकार किसके लिए - विचार कीजिये