------ दाने दाने पर लिखा है ------
------ खाने वाले का नाम ------
एक बार श्री गुरू नानक देव जी अपने दोनों शिष्यों बाला और मरदाना के साथ किसी गांव में से गुजर रहे थे।
चलते-चलते रास्ते में एक मकई का खेत आया।
बाला स्वाभाविक रूप से बहुत कम बोलते थे,
मगर जो मरदाना थे वे बाल की खाल उधेढ़ कर रख देते थे,
अर्थात बात की गहराई तक जाते थे।
मकई का खेत देख कर मरदाने ने श्री गुरू नानक देव जी से सवाल किया- बाबा जी! इस मकई के खेत में जितने भी दाने हैं,
क्या वे सब पहले से निर्धारित कर दिये गए हैं कि कौन इसका हकदार है और ये किसके मुंह में जायेंगे?
इस पर श्री गुरू नानक देव जी कहा- बिल्कुल! इस संसार में कहीं भी और कोई भी खाने योग्य वनस्पति पर मोहर पहले से ही लग गई है।
और जिसके नाम की मोहर होगी वही जीव उसका ग्रास करेगा।
श्री गुरू नानक देव जी की इस बात ने मरदाने के मन के अन्दर कई सवाल खड़े कर दिए।
मरदाने ने मकई के खेत से एक मक्का तोड़ लिया और उसका एक दाना निकाल कर अपनी हथेली पर रख लिया।
और फिर श्री गुरू नानक देव जी से पूछने लगा- बाबा जी! कृपा करके आप मुझे बताएं,
कि इस दाने पर किसका नाम लिखा है?
इस पर श्री गुरू नानक देव जी ने मुस्करा कर कहा- इस दाने पर एक मुर्गी का नाम लिखा है।
मरदाने ने उनके सामने बड़ी ऐ चालाकी दिखाते हुए मकई का वो दाना अपने मुंह मे डाल लिया,
और फिर श्री गुरू नानक देव जी से कहने लगा- बाबा जी! कुदरत का ये नियम तो बड़ी ही आसानी से टूट गया।
पर परमात्मा की करनी देखिये।
मरदाने ने जैसे ही वो दाना निगला,
वो दाना सीधे जाकर मरदाने की श्वास नली में फंस गया।
अब मरदाने की हालत तीर लगे कबूतर जैसी हो गई।
मरदाने ने श्री गुरू नानक देव जी को कहा- बाबा जी! कुछ कीजिये।
नहीं तो मैं मर जाऊंगा।
श्री गुरू नानक देव जी ने कहा- बेटा! मैं क्या करूं?
अब तो कोई वैद्य या हकीम ही इसको निकाल सकता है।
चलो! पास के गांव में चलते हैं और वहां किसी हकीम को दिखाते हैं।
मरदाने को लेकर वे पास के एक गांव में चले गए।
वहां एक हकीम से मिले।
उस हकीम ने मरदाने की नाक में नसवार डाल दी।
नसवार बहुत तेज थी और नसवार सूंघते ही मरदाने को छींकें आनी शुरू हो गईं।
फिर छींकने से मकई का वो दाना गले से निकलकर बाहर गिर गया।
और जैसे ही दाना बाहर गिरा,
पास ही खड़ी एक मुर्गी ने झट से वो दाना खा लिया।
ये देखकर मरदाने ने श्री गुरू नानक देव जी से क्षमा मांगी और कहा- बाबा जी! मुझे माफ कर दीजिए जो मैंने आपकी बात पर शक किया।
श्री गुरू नानक देव जी ने मुस्कुराते हुए मरदाने को गले से लगा लिया।
------ तात्पर्य ------
हमें हमेशा ही अपने गुरु/सत्गुरू पर पूरा विश्वास होना चाहिए,
और कभी भी उन पर रत्ती भर भी शक नहीं करना चाहिए।
गुरु/सत्गुरू, परमात्मा के भेजे हुए वो जीव हैं,
जो कि हम भटके हुए इंसानों को इस जनम-मरण के बंधनों से छुटकारा दिलाकर,
और सदा-सदा के लिए सीधे ही परमात्मा के पास भेजने का तरीका बताते हैं।
क्योंकी इस कलयुग में गुरु/सत्गुरू के अलावा तो और कोई भी हमारा साथ दे ही नहीं सकता है।
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