Thursday, October 25, 2018

हाल फिलहाल में सोशल मीडिया पर देखी गई यह सबसे बेहतरीन तस्वीर है।

हाल फिलहाल में सोशल मीडिया पर देखी गई यह सबसे बेहतरीन तस्वीर है।

तस्वीर के मध्य में व्हीलचेयर पर बैठी लड़की का नाम उषा है।
उषा के आसपास स्टेपिंग स्टोन मॉडर्न स्कूल की दूसरी कक्षा के छात्र छात्राएं खड़े मुस्कुरा रहे हैं।

इस तस्वीर के पीछे की कहानी अद्भुत है।

उषा एक दिहाड़ी मजदूर के घर पैदा हुई। जन्म से उषा के कमर से निचला हिस्सा लगभग निष्क्रिय था। कुछ समय बाद पता चला के उषा ना बोल सकती है और ना सुन सकती है। एक रोज़ उषा का अपने पिता के साथ स्कूल में आना हुआ। उषा और उसके पिता स्कूल के प्लेग्राउंड में खड़े थे जहाँ बच्चे गेंद के साथ खेल रहे थे। एक बच्चे ने गेंद फेंकी तो वह उषा के पास आ गिरी। उषा ने गेंद उठाई और फट से बच्चों के पास फेंक दी।

वहीं पर दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा ख्याति खड़ी थी। ख्याति ने उषा को देखा तो उसे अटपटा से लगा। उषा अपने पिता के सहारे बैठी थी और उसकी एक टांग टेढ़ी दिखाई दे रही थी। उत्सुकतावश ख्याति उषा के पास पहुंची और उसे अपने साथ खेलने को कहा। उषा सुन नहीं सकती थी पर साथ खड़े मज़दूर पिता सब सुन रहे थे। उन्होंने विनम्रतापूर्वक ख्याति से कहा के उषा उनके साथ नहीं खेल सकती क्योंकि वह "उन जैसी" नहीं है। वह दौड़ नहीं सकती। एक दिव्यांग लड़की को देख कर ख्याति के मन में एक अजीब सी उत्सुकता जाग उठी। बच्चों का मन हर एक बात को जानने के लिये उत्सुक होता है। ख्याति ने यह बात अपने दादा से साँझा की। दादा ने विस्तारपूर्वक समझाया के विकलांगता क्या होती है और किस कारणवश होती है।
बच्चे दिल के कोमल होते हैं।

ख्याति ने जब विकलांगता के विषय मे समझा तो उसका दिल पसीज गया। भोले स्वभाव में उसने अपने दादा से कहा के वह उषा को एक स्कूटर ले देगी जिसपर बैठ कर उषा हर जगह आसानी से जा सकेगी।

दादा जी ने कहा के स्कूटर खरीदने के पैसे कहाँ से लाओगी।
......तो भोली भाली बिटिया ने जवाब दिया के उसकी गुल्लक में काफी पैसे जमा हैं। उन्ही से स्कूटर खरीद कर उषा को दे देगी। यह कहने भर की देर थी के दादा जी ने बिटिया को "व्हीलचेयर" की एक तस्वीर दिखाई और कहा के दिव्यांग उषा को यही स्कूटर देना है।

ख्याति तैयार हो गयी। अगली सुबह स्कूल की घँटी बजी तो ख्याति ने अपने सहपाठियों को उषा के विषय में बताया। इसके बाद जो हुआ उसने इस तस्वीर को इतना मार्मिक और खूबसूरत बना दिया के शब्दों में बयां करना मुश्किल है।

स्टेपिंग स्टोन मॉडर्न स्कूल के दूसरी कक्षा के लगभग सभी बच्चों ने अपनी गुल्लक तोड़ने का निश्चय किया। किसी की गुल्लक से 100 रुपये के सिक्के निकले तो किसी की गुल्लक से 500 रुपये का योगदान मिला।

पैसा इक्कठा कर के क्लास टीचर को सौंप दिया गया और फिर एक दिन उषा और उसके पिता को स्कूल में बुलाया गया। एकत्रित धनराशि से उषा के लिये उसका स्कूटर यानि व्हीलचेयर खरीदी गई थी। उषा जब व्हीलचेयर पर बैठी तो सभी बच्चों ने तालियाँ बजा कर उसका उत्साहवर्धन किया और अपना स्कूटर हासिल कर के उषा के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गयी।

"बचपना छोड़ दो" जब बड़े हो जाएं तो यह डायलॉग अक्सर सुनने को मिलता है। सुन कर ऐसा लगता है जैसे हमारे स्वभाव का एक बेहतरीन अंश कोई हमसे छीन रहा हो। यह "बचपना" ही तो है जिसकी वजह से अंतरात्मा में थोड़ी बहुत शुद्धता बची है। यह "बचपना" ही तो है जिसकी वजह से हम कभी कभी बच्चों की तरह खुल कर हंसते हैं। अटखेलियां करते हैं। आज भी माँ की गोद में सर टेक कर सो जाते हैं।

यह जो थोड़ा सा "बचपना" हम सब मे बाकी है यह बड़ा मूल्यवान् है। यह जीवित है तो भावनायें जीवित हैं। संवेदनायें जीवित हैं।

【रचित】

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