Friday, April 5, 2019

एक वेलगाडी बाला डंडे से अपनी वेलगाडी* *को पीटे जा रहाथा गालियां बकता जा रहा था* *एक सन्त गुजर रहा था पूछा वेलगाडी वाले से* *तू वेलगाडी को क्यो पीट रहा है कि महाराज ये* *गाड़ी नही चल रही सन्त बोला तू बेलो को मना* *या डांट इनसे गाड़ी चलेगी।* *हम मनुष्यो की भी यही हालत है अपने शरीर* *रूपी वेलगाडी को पीटे जा रहे है वेल रूपी मन* *को नही सुधारते। कोई भूखा रहकर कोई नंगा* *रहकर कोई आग में कोई हिमालय की बर्फ में* *कोई कांटो पर जने कितने तरीको से शरीर को* *सता कर जाने कौनसा धर्म कर रहे है।* *पर मन कैसे मन्दिर बने इस बारे में कुछ नही* *जानते मन है परमात्मा का मंदिर जिसमे आत्मा* *रूप से परमात्मा वेठ सकता है अगर सही दिशा* *में चेतना को मोड़ा जाय।* ॐ तत्सत। 🌹🌷🌹🙏🌹🌷🌹

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