Saturday, March 23, 2019

*अच्छी सिख

*अच्छी सिख*
एक बार एक पिता और पुत्र साथ कहीं टहलने निकले, टहलते टहलते वे दूर खेतों की तरफ निकल आये। तभी बातों बातों में पुत्र ने देखा की रास्ते में पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं , जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे जो अब अपना काम ख़त्म कर घर वापस जाने की तयारी कर रहा था .
पुत्र को मजाक सूझा उसने पिता से कहा , “ पिताजी जी क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार बनायें, आखिर मस्ती ही तो आनन्द का सही श्रोत है और यादों में भी ये पल याद रहते है, पिता ने असमंजस वस बेटे की ओर देखा , पुत्र बोला हम ये जूते कहीं छिपा कर झाड़ियों के पीछे छिप जाएं ; जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा !!” उसकी तलब देखने लायक होगी और इसका आनन्द मैं जीवन भर याद रखूंगा।।
पिता पुत्र की बात को सुन गम्भीर हुये और बोले,,  “ बेटा किसी गरीब और कमजोर के सांथ और उसकी जरूरत की वस्तु  के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना ,जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं वो उस गरीब के लीये बेसकीमती है, अगर तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है तो आओ आज हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छिप कर देखें की इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है !!”
पिता ने ऐसा ही किया और दोनों पास की ऊँची झाड़ियों में छुप गए .
मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया . उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ , उसने जल्दी  से जूते हाथ में लिए और देखा की अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे , उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें पलट -पलट कर देखने लगा.
फिर उसने इधर -उधर देखने लगा की उसका मददगार शख्स को है?? दूर -दूर तक कोई नज़र नहीं आया तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए . अब उसने दूसरा जूता उठाया , उसमे भी सिक्के पड़े थे …मजदूर भावविभोर हो गया , वो घुटनो के बल जमीन पर बैठ, आसमान की तरफ देख फुट फुट कर रोने लगे गया,  आसमान की तरफ हाँथ जोड़ बोला
“हे भगवान् ,आज आप हिं किसी न किसी रूप में यहां आये थे, समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए  आपका और आपके माध्यम से जिसने भी ये मदद दी उसका लाख -लाख धन्यवाद , आज आपकी  सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दवा और भूखें बच्चों को रोटी मिल सकेगी.” तुम बोहत दयालु हो प्रभु कोट कोट धन्यवाद।।
मजदूर की बातें सुन बेटे की आँखें भर आयीं . पिता ने पुत्र को सीने से लगाते हुयेे कहा – “ क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता उसकी तुलना में इस गरीब के आंसू और तुम्हें दिए हुये आशीर्वाद तुंम्हे जीवन पर्यतन जो आनन्द देंगे उसकी तुलना की जा सकती है?? क्या इसका आनन्द उससे कम है??
पिताजी आज आपसे मुझे जो सिखने को मिला है उसके आनंद को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ, अंदर में एक अजीब सा सुकून है। आज के प्राप्त सुख और आनन्द को  मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा . आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया हूँ जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था आज तक मैं मजा और मस्ती , मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था,पर आज मैं समझ गया हूँ कि लेने  की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है . देने का आनंद असीम है . देना ही देवत्तव है .”

कथा सार----
आज हम सुखों को अपनी इच्छाओं में,  वस्तुओं में, घूमने में, व्यसन में , मौज मस्ती में, पैसों में, तरक्की में, भोग में, खाने पीने में, ढूंढ रहे हैं,, पर क्या सुख और शांति की प्राप्ति हुई???
दरअसल हम सुख को ढूंढ बाहर की चीजों में रहे हैं और वो हमारे अंदर ही है ,जरूरत बस उसे देखने भर मात्र की ही है।।
देने का सुख अन्य सभी सुखों से बड़ा है,यहां देने का मतलब पैसे, दान , या सिर्फ मदद् और पैसों से नही है, जिसके पास है वो भले दे उसमे कुछ गलत नहीं है, पर पैसों से भी बद्धकर दौलत है, प्रेम, सहयोग, विश्वास, अपनत्व, मान, समानता, ये ऐसा धन है जिसे आप चाहे जितना  लोगों में बाँट सकते हो जिनकी तुलना पैसों से नहीं की जा सकती, और इसका सुख असीम है। क्योंकि प्रेमऔर सुख  वो धन है जो न मांग कर प्राप्त किया जा सकता है, न छीन कर, और न ही वस्तूओं और कामनाओं को प्राप्त करके ,,  यह तो केवल बाँटने से ही प्राप्त हो सकता है।।

*जय श्रीराधे कृष्णा*

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