*🌷ओ३म्🌷*
*🌻धर्म का स्वरूप🌻*
*धर्म क्या है ?*
जिस विषय में सबकी एक सम्मति हो वह धर्म और उससे विपरीत अधर्म है । जैसे विद्या पढ़ने, ब्रह्मचर्य पालने, सत्यभाषण करने, युवावस्था में विवाह करने, सत्संग-पुरूषार्थ-सत्य-व्यवहार करने में धर्म और अविद्या-ग्रहण, ब्रह्मचर्य का पालन न करने, व्यभिचार करने, कुसंग, आलस्य, असत्य-व्यवहार, छल-कपट, हिंसा, पर-हानि करने आदि में अधर्म हैं ।
*(सत्यार्थप्रकाश के आधार पर )*
महर्षि मनु ने धर्म के जो लक्षण लिखे हैं, वे सार्वभौम हैं ।यथा -
*धृतिः क्षमा दमोsस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।*
*धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।*
मनुस्मृति - ६ । ९२
*धृतिः--* सदा धैर्य रखना । तनिक - तनिक - सी बातों में अधीर न होना ।
*क्षमा--* निन्दा-स्तुति, मान-अपमान, हानि-लाभ में सहनशील रहना ।
*दमः--* चञ्चल मन को वश में करके उसे अधर्म की ओर जाने से रोकना ।
*अस्तेयम्--* चोरी-त्याग । बिना स्वामी की आज्ञा के किसी पदार्थ के लेने की इच्छा भी न करना ।
*शौचम्--* बाहर और भीतर की पवित्रता । स्नान, वस्त्र-प्रक्षालन आदि से बाहर की और राग-द्वेष से अन्दर की शुद्धता रखना ।
*इन्द्रीयनिग्रहः--* सभी इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोककर धर्म-मार्ग में चलाना ।
*धीः--* मादक द्रव्यों के त्याग, सत्संग और योगाभ्यास से बुद्धि को बढ़ाना ।
*विद्या--* पृथिवी से लेकर परमेश्वर - पर्यन्त पदार्थों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना विद्या हैं ।
*सत्यम् --* जो पदार्थ जैसा हैं, उसे वैसा ही जानना, मानना, बोलना और लिखना भी सत्य कहलाता हैं ।
*अक्रोधः--* क्रोध न करना, सदा शान्त रहना ।
इस दस लक्षणोंवाले धर्म का पालन सभी को करना चाहिए ।
*💥 (स्वामी जगदीश्वरानंद सरस्वती कृत धर्म-शिक्षा से साभार )*
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