Wednesday, July 18, 2018

*🌷ओ३म्🌷* *🌻धर्म का स्वरूप🌻* *धर्म क्या है ?* जिस विषय में सबकी एक सम्मति हो वह धर्म और उससे विपरीत अधर्म है । जैसे विद्या पढ़ने, ब्रह्मचर्य पालने, सत्यभाषण करने, युवावस्था में विवाह करने, सत्संग-पुरूषार्थ-सत्य-व्यवहार करने में धर्म और अविद्या-ग्रहण, ब्रह्मचर्य का पालन न करने, व्यभिचार करने, कुसंग, आलस्य, असत्य-व्यवहार, छल-कपट, हिंसा, पर-हानि करने आदि में अधर्म हैं । *(सत्यार्थप्रकाश के आधार पर )* महर्षि मनु ने धर्म के जो लक्षण लिखे हैं, वे सार्वभौम हैं ।यथा - *धृतिः क्षमा दमोsस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।* *धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।* मनुस्मृति - ६ । ९२ *धृतिः--* सदा धैर्य रखना । तनिक - तनिक - सी बातों में अधीर न होना । *क्षमा--* निन्दा-स्तुति, मान-अपमान, हानि-लाभ में सहनशील रहना । *दमः--* चञ्चल मन को वश में करके उसे अधर्म की ओर जाने से रोकना । *अस्तेयम्--* चोरी-त्याग । बिना स्वामी की आज्ञा के किसी पदार्थ के लेने की इच्छा भी न करना । *शौचम्--* बाहर और भीतर की पवित्रता । स्नान, वस्त्र-प्रक्षालन आदि से बाहर की और राग-द्वेष से अन्दर की शुद्धता रखना । *इन्द्रीयनिग्रहः--* सभी इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोककर धर्म-मार्ग में चलाना । *धीः--* मादक द्रव्यों के त्याग, सत्संग और योगाभ्यास से बुद्धि को बढ़ाना । *विद्या--* पृथिवी से लेकर परमेश्वर - पर्यन्त पदार्थों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना विद्या हैं । *सत्यम् --* जो पदार्थ जैसा हैं, उसे वैसा ही जानना, मानना, बोलना और लिखना भी सत्य कहलाता हैं । *अक्रोधः--* क्रोध न करना, सदा शान्त रहना । इस दस लक्षणोंवाले धर्म का पालन सभी को करना चाहिए । *💥 (स्वामी जगदीश्वरानंद सरस्वती कृत धर्म-शिक्षा से साभार )*

*🌷ओ३म्🌷*

*🌻धर्म का स्वरूप🌻*

*धर्म क्या है ?*
जिस विषय में सबकी एक सम्मति हो वह धर्म और उससे विपरीत अधर्म है । जैसे विद्या पढ़ने, ब्रह्मचर्य पालने, सत्यभाषण करने, युवावस्था में विवाह करने, सत्संग-पुरूषार्थ-सत्य-व्यवहार करने में धर्म और अविद्या-ग्रहण, ब्रह्मचर्य का पालन न करने, व्यभिचार करने, कुसंग, आलस्य, असत्य-व्यवहार, छल-कपट, हिंसा, पर-हानि करने आदि में अधर्म हैं ।
*(सत्यार्थप्रकाश के आधार पर )*

महर्षि मनु ने धर्म के जो लक्षण लिखे हैं, वे सार्वभौम हैं ।यथा -
*धृतिः क्षमा दमोsस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।*
*धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ।।*
मनुस्मृति - ६ । ९२
*धृतिः--* सदा धैर्य रखना । तनिक - तनिक - सी बातों में अधीर न होना ।

*क्षमा--* निन्दा-स्तुति, मान-अपमान, हानि-लाभ में सहनशील रहना ।

*दमः--* चञ्चल मन को वश में करके उसे अधर्म की ओर जाने से रोकना ।

*अस्तेयम्--* चोरी-त्याग । बिना स्वामी की आज्ञा के किसी पदार्थ के लेने की इच्छा भी न करना ।

*शौचम्--* बाहर और भीतर की पवित्रता । स्नान, वस्त्र-प्रक्षालन आदि से बाहर की और राग-द्वेष से अन्दर की शुद्धता रखना ।

*इन्द्रीयनिग्रहः--* सभी इन्द्रियों को अधर्माचरण से रोककर धर्म-मार्ग में चलाना ।

*धीः--* मादक द्रव्यों के त्याग, सत्संग और योगाभ्यास से बुद्धि को बढ़ाना ।

*विद्या--* पृथिवी से लेकर परमेश्वर - पर्यन्त पदार्थों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना विद्या हैं ।

*सत्यम् --* जो पदार्थ जैसा हैं, उसे वैसा ही जानना, मानना, बोलना और लिखना भी सत्य कहलाता हैं ।

*अक्रोधः--* क्रोध न करना, सदा शान्त रहना ।

इस दस लक्षणोंवाले धर्म का पालन सभी को करना चाहिए ।

*💥 (स्वामी जगदीश्वरानंद सरस्वती कृत धर्म-शिक्षा से साभार )*

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